Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - बारहवां भावेन्द्रिय द्वार
१०१
एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया भाविंदिया अतीता? गोयमा! अणंता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक की नैरयिकत्व के रूप में कितनी अतीत भावेन्द्रियाँ हुई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक की नैरयिकत्व के रूप में अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? पंच,
पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्स अस्थि पंच वा दस वा पण्णरस वा संखिजा वा असंखिजा वा अणंता वा। एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमारणं, णवरं बद्धेल्लगा णत्थि।
भावार्थ - इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ पांच हैं और पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ किसी की होती होंगी, किसी की नहीं होंगी। जिसको होंगी, उसकी पांच, दस, पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगी।
इसी प्रकार एक-एक नैरयिक की असुरकुमारत्व से लेकर यावत् स्तनितकुमारत्व के रूप में अतीतादि भावेन्द्रियों का कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ नहीं है।
पुढविकाइयत्ते जाव बेइंदियत्ते जहा दव्विंदिया।
भावार्थ - एक-एक नैरयिक की पृथ्वीकायत्व से लेकर यावत् बेइन्द्रियत्व के रूप में अतीत आदि भावेन्द्रियों का कथन द्रव्येन्द्रियों की तरह करना चाहिए।
तेइंदियत्ते तहेव, णवरं पुरेक्खडा तिण्णि वा छ वा णव वा संखिजा वा असंखिज्जा वा अणंता वा।
भावार्थ - तेइन्द्रियत्व के रूप में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह कि इसकी पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ तीन, छह, नौ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगी।
एवं चउरिदियत्ते वि, णवरं पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा संखिजा वा असंखिज्जा वा अणंता वा।
भावार्थ - इसी प्रकार चउरिन्द्रियत्व के रूप में भी कहना चाहिए। विशेषता यह कि इसकी पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ चार, आठ, बारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगी। __एवं एए चेव गमा चत्तारि जाणेयव्वा जे चेव दव्विदिएस, णवरं तइयगमे जाणियव्वा जस्स जइ इंदिया ते पुरेक्खडेसु मुणेयव्वा। चउत्थेगमे जहेव दव्विदिया जाव सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवइया भाविंदिया अतीता? गोयमा!
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org