Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
५. चार अनुत्तर विमान के देवों के आगे के मनुष्य भवों में आठ एवं सोलह द्रव्येन्द्रियाँ बताई गई । १६ द्रव्य इन्द्रियाँ मनुष्य मरकर मनुष्य बने उसी में होगी। मनुष्य बनकर मनुष्य बनने वाला मिथ्यात्व में ही आयुष्य बांधा हुआ होता है तथा सर्वार्थ सिद्ध से आकर मनुष्य बने उसमें भी थोड़ी देर के लिए कभी मिथ्यात्व आ जावे तो बाधा नहीं है। इसी कारण से मिथ्यात्वी की आगति में ५ अनुत्तर विमान को लिए हैं ।
६. चार अनुत्तर विमान के आगे की द्रव्येन्द्रियाँ ८, १६, २४, यावत् संख्याती बताई है। इस पाठ से उनके अधिकतम आगे के तेरह भव होना स्पष्ट होता है । अनुत्तर विमान में जाने वाले नियमा आराधक ही होते हैं। आराधक १५ भव से ज्यादा नहीं करते हैं। दो भव तो हो गये शेष १३ भव ओर बचे हैं। इन तेरह भवों में बीच के भवों में विराधना के भव भी हो सकते हैं।
७. चौबीस ही दण्डक के जीवों के नवग्रैवेयक देवपने अतीता, अनंती द्रव्येन्द्रियाँ बताई है। इस पाठ से अनन्तबार संयम लिया हुआ सिद्ध होता है । अतः मेरु जितने ओघा आदि लिए ऐसा कहना भी अपेक्षा से ठीक ही है। प्रज्ञापना सूत्र के छठे पद में स्वलिंगी (साधु का वेश वाले) सम्यग्दृष्टि एवं स्वलिंगी मिथ्यादृष्टि जीवों का ही नव ग्रैवेयक में जाना बताया है।
८. चार अनुत्तरविमान के देव असंख्याता होते हुए भी उनके सर्वार्थ सिद्ध देवपने पुरेक्खड़ा संख्याती इन्द्रियाँ ही बताई है। इसका कारण यह है कि चार अनुत्तर विमान वाले सभी देव १३ भवों से अधिक तो करेगें ही नहीं। इतने काल में सर्वार्थ विमान में संख्याता देव ही समा सकते हैं। यदि एक-एक बार में अरबों जीव भी सर्वार्थ सिद्ध में जावें तो भी १३ बार में तो पृच्छा समय वाले चार अनुत्तर विमान वाले देवों का च्यवन होकर वह स्थान खाली हो जायेगा अतः संख्याता इन्द्रियाँ करना ही बताया है।
९. द्रव्येन्द्रियाँ एवं. भावेन्द्रियाँ की पृच्छा में मात्र व्यवहार राशि वाले चौबीस ही दण्डकों में अनन्त-अनन्त भव किये हुए जीवों का ही ग्रहण हुआ है। अतः यह पाठ देश-जीवों विषयक है।
॥ बीओ उद्देसो समत्तो ॥
॥ इन्द्रिय पद का दूसरा उद्देशक समाप्त ॥
॥ पण्णवणाए भगवईए पण्णरसमं इंदियपयं समत्तं ॥ ॥ प्रज्ञापना भगवती सूत्र का पन्द्रहवां इन्द्रिय पद समाप्त ॥
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