Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
णेरइयाणं भंते! केवइया भाविंदिया अतीता? गोयमा! अणंता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बहुत से नैरयिकों की अतीत भावेन्द्रियाँ कितनी हुई हैं ? उत्तर - हे गौतम! बहुत से नैरयिकों की अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? असंखिजा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी बद्ध भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! उनकी बद्ध भावेन्द्रियाँ असंख्यात हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंतां। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ अनन्त होंगी।
एवं जहा दष्विदिएस पोहत्तेणं दंडओ भणिओ तहा भाविदिएसु वि पोहत्तेणं दंडओ भाणियव्वो, णवरं वणस्सइकाइयाणं बद्धेल्लगा अणंता॥ ४५८॥
भावार्थ - इसी प्रकार जैसे-द्रव्येन्द्रियों में पृथक्त्व बहुवचन से दण्डक कहा है, इसी प्रकार भावेन्द्रियों में भी पृथक्त्व बहुवचन से दण्डक कहना चाहिए। विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों की बद्ध भावेन्द्रियाँ अनंत है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अनेक जीवों की अपेक्षा अतीत, वर्तमान और भविष्य काल की भावेन्द्रियों का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार हैं -
बहुत से नारकी के नैरयिकों ने भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में असंख्यात हैं और भविष्य में अनन्त होंगी। भवनपति, बाणब्यन्तर, ज्योतिषी व पहले देवलोक से नववेयक तक के बहुत से देखों ने तथा चार स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिपंच पंचेन्द्रिय और असत्री मनुष्य के बहुत से जीवों ने भावन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त कौं, वर्तमान मैं असंख्यात हैं और भविष्य में अनन्त होगी। वनस्पति काय के बहुत जीवों ने भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में अनन्त हैं और भविष्य में अनन्त होंगी। बहुत से संज्ञी मनुष्य और सर्वार्थसिद्ध के देवों ने भावेन्द्रियाँ अतीतकाल में अनन्त की, वर्तमान में संख्यात हैं और भविष्य में मनुष्यों में अनन्त होंगी और सर्वार्थसिद्ध के देवों में संख्यात होंगी। चार अनुत्तर विमान के बहुत देवों ने भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में असंख्यात हैं और भविष्य में असंख्यात होंगी।
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