Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अर्थावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार हैं - श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय (मन) अर्थावग्रह।
विवेचन - अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है - अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। अर्थ का अवग्रह अर्थावग्रह कहलाता है अर्थात् जिसका निर्देश नहीं किया जा सके ऐसे सामान्य रूप आदि अर्थ का ग्रहण-ज्ञान अर्थावग्रह है। यहाँ नंदी सूत्र के चूर्णिकार कहते हैं - "सामण्णस्स रूवाइविसेसण रहियस्सअनिद्देसस्समवग्गहणं अवग्गहो" - रूपादि विशेषण रहित यानी यह रूप है, गन्ध है, शब्द है या स्पर्श है इत्यादि नाम जाति आदि की कल्पना रहित, जिसका निर्देश नहीं किया जा सके ऐसे सामान्य अर्थ का ग्रहण अवग्रह कहा जाता है।
'व्यज्यते अनेन अर्थः' जैसे दीपक से घट प्रकट किया जाता है वैसे ही जिसके द्वारा अर्थ व्यक्त किया जाए, उसे व्यञ्जन कहते हैं। तात्पर्य यह है कि उपकरण इन्द्रिय और शब्दादि रूप में परिणत द्रव्यों के परस्पर सम्बन्ध होने पर ही श्रोत्रेन्द्रिय आदि इन्द्रियाँ शब्द आदि विषयों को व्यक्त करने में समर्थ होती है, अन्यथा नहीं। अतः इन्द्रिय और उसके विषय का संबंध व्यञ्जन कहलाता है। दर्शनोपयोग के पश्चात् अत्यंत अव्यक्त रूप ज्ञान व्यञ्जनावग्रह है।
शंका - प्रथम व्यञ्जनावग्रह होता है और तत्पश्चात् अर्थावग्रह होता है फिर यहाँ पहले अर्थावग्रह क्यों कहा गया है?
समाधान - अर्थावग्रह अपेक्षाकृत स्पष्ट स्वरूप वाला होता है अतः अर्थावग्रह का व्यञ्जनावग्रह से पहले कथन किया गया है। उपकरण इन्द्रिय और शब्द आदि के परिणत द्रव्यों का जो संबंध होता है वह व्यञ्जनावग्रह है। चार प्राप्यकारी इन्द्रियाँ ही ऐसी है जिनका अपने विषय के साथ संबंध होता है। चक्षु और मन ये दोनों अप्राप्यकारी होने से इनका अपने विषय के साथ संबंध नहीं होता अतः व्यञ्जनावग्रह चार प्रकार का ही बताया गया है जबकि अर्थावग्रह छह प्रकार का होता है अर्थात् अर्थावग्रह सभी इन्द्रियों और मन से होता है। इस कारण भी इसका कथन पहले किया गया है। ..
णेरइयाणं भंते! कइविहे उग्गहे पण्णत्ते?
गोयमा! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते। तंजहा - अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के दो प्रकार के अवग्रह कहे गए हैं, यथा-अर्थावग्रह और
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