Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - बहुत से वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देवों की अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता नैरयिकत्व से लेकर सर्वार्थसिद्ध देवत्व रूप तक में नैरयिकों की वक्तव्यता के समान जानना चाहिए।
सोहम्मगदेवाणं एवं चेव। णवरं विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते अतीता असंखिजा, बद्धलगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखिजा। सबट्ठ सिद्धग देवत्ते अतीता णत्थि, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखिज्जा। ___ भावार्थ - सौधर्म देवों की अतीत आदि की वक्तव्यता इसी प्रकार है। विशेषता यह है कि विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हुई हैं, बद्ध नहीं है तथा पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात होंगी। सर्वार्थसिद्ध देवत्व रूप में अतीत नहीं हुई हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात होंगी।
एवं जाव गेवेजगदेवाणं।
भावार्थ - बहुत से ईशान देवों से लेकर यावत् ग्रैवेयक देवों की अतीत, बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझ लेनी चाहिए।
विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवाणं भंते! णेरइयत्ते केवइया-दविदिया अतीता? गोयमा! अणंता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! विजय, वैजयन्त; जयन्त और अपराजित देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हुई हैं? ।
उत्तर - हे गौतम! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की नैरयिकत्व के रूप अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं।
केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! णत्थि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। . केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! णत्थि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होंगी।
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