Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं ।
केवइया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! णत्थि ।
प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी ? उत्तर - हे गौतम! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होंगी ।
एवं मणूसवज्जं जाव गेवेज्जगदेवत्ते ।
भावार्थ - मनुष्य को छोड़ कर यावत् ग्रैवेयक देवत्व तक के रूप में इसी प्रकार इनकी अतीत आदि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता कहनी चाहिए।
सत् अतीता अनंता, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा संखिजा ।
भावार्थ - इनकी मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत संख्यात होंगी।
विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवइया दव्विंदिया अतीता ?
गोयमा ! संखिज्जा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में इनकी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हुई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में इनकी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात हुई हैं ।
केवइया बद्धेल्लगा?
गोयमा ! णत्थि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
उत्तर - हे गौतम! इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं ।
केवइया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! णत्थि ।
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भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी ?
उत्तर - हे गौतम! नहीं होंगी।
सव्वसिद्धगदेवाणं भंते! सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते केवइया दव्विंदिया अतीता ?
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