Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते जहा णेरइयस्स । एवं जाव गेवेज्जगदेवस्स सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते ताव
णेयव्वं ॥ ४५५ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होगी, किसी की नहीं होगी। जिसकी होंगी, आठ या सोलह होंगी। सौधर्म देव की सर्वार्थसिद्ध देवत्व रूप में अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता नैरयिक की वक्तव्यता के समान समझनी चाहिए। ईशान देव से लेकर ग्रैवेयक देव तक की यावत् सर्वार्थसिद्ध देवत्वरूप में अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार कहनी चाहिए ।
एगमेगस्स णं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजिय देवस्स णेरइयत्ते केवड्या व्विदिया अतीता ?
गोयमा ! अनंता ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की नैरयिक के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हुई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की नैरयिक के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं।
केवइया बद्धेल्लगा?
गोयमा ! णत्थि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उसकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! उसकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं।
केवड्या पुरेक्खडा ?
गोयमा ! णत्थि । एवं जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियत्ते ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी ?
उत्तर - हे गौतम! नहीं होंगी। इन चारों की प्रत्येक की, असुरकुमारत्व से लेकर यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकत्व रूप में अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी -
चाहिए।
मणूसत्ते अतीता अणंता, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा अट्ठ वा सोलस वा चवीसा वा संखिज्जा वा ।
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