Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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'पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - अनेक जीवों की अपेक्षा
णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवइया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अणंता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बहुत-से नैरयिकों की नैरयिकत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हुई हैं?
उत्तर - हे गौतम! बहुत-से नैरयिकों की नैरयिकत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! असंखिज्जा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे असंख्यात हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! अणंता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी? उत्तर - हे गौतम! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त होंगी। णेरइयाणं भंते! असुरकुमारत्ते केवइया दविदिया अतीता? गोयमा! अणंता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बहुत से नैरयिकों की असुरकुमारत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हुई हैं?
उत्तर - हे गौतम! बहुत से नैरयिकों की असुरकुमारत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हुई हैं। केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! णत्थि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? उत्तर - हे गौतम! उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! अणंता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होंगी?' उत्तर - हे गौतम! उनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त होंगी। एवं जाव गेवेजगदेवत्ते।
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