Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - एक जीव की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियां
७३
गोयमा! अतीता अणंता, बद्धेल्लगा असंखिजा, पुरेक्खडा असंखिज्जा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बहुत से विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी-कितनी हैं ?
उत्तर - हे गौतम! बहुत से विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं और पुरस्कृत असंख्यात हैं।
सव्वट्ठसिद्धग देवाणं पुच्छा? . गोयमा! अतीता अणंता, बद्धेल्लगा संखिज्जा, पुरेक्खडा संखिजा॥ ४५३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सर्वार्थसिद्ध देवों की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी कितनी हैं?
उत्तर - हे गौतम! इनकी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध संख्यात हैं और पुरस्कृत संख्यात हैं। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एक जीव की अपेक्षा और अनेक जीवों की अपेक्षा अतीत (भूतकाल) वर्तमान (बद्धेल्लगा) और भविष्य (पुरेक्खडा) काल की द्रव्येन्द्रियों का वर्णन किया गया है। जो इस प्रकार हैं -..
. एक जीव की अपेक्षा द्रव्येन्द्रियाँ एक नैरयिक ने अतीत काल में द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त की हैं। वर्तमान काल संबंधी द्रव्येन्द्रियाँ उसके आठ हैं और भविष्य में आठ अथटा सोलह अथवा सतरह यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी।
एक असुरकुमार देवता ने अतीत काल में द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त की, वर्तमान काल में आठ हैं और भविष्य में आठ, नौ अथवा दस यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। असुरकुमार की तरह शेष नवनिकाय के भवनपति देव कहना। पृथ्वी, पानी और वनस्पति के एक-एक जीव ने अतीत काल में द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त की, वर्तमान में एक द्रव्येन्द्रिय है और भविष्य में आठ अथवा नौ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी।
तेजस्काय, वायुकाय, बेइन्द्रिय, तेउन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय और असंज्ञी मनुष्य के एक-एक जीव ने अतीत काल में द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त की, वर्तमान में तेजस्काय, वायुकाय के एक, बेइन्द्रिय के दो, तेउन्द्रिय के चार, चउरिन्द्रिय के छह, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय और असंज्ञी मनुष्य के आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं तथा भविष्य में नौ, दस अथवा ग्यारह यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी।
संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय के एक-एक जीव ने द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान काल में आठ हैं और भविष्य में आठ अथवा नौ यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी।
संज्ञी मनुष्य के एक-एक जीव के द्रव्येन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान काल में आठ हैं
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