Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - द्वीप और उदधि द्वार
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५७
andसमयमाण
नाम, शक्र आदि इन्द्रों के नाम, देवकुरु उत्तस्कुरु के नाम, मेरु पर्वत, शक्रादि के आवास, कूट, नक्षत्र, चन्द्र सूर्य के नाम के तीन-तीन द्वीप समुद्र हैं। अन्त में देव, नाग, यक्ष, भूत और स्वयंभूरमण इन नाम के पांच द्वीप समुद्र एक-एक ही हैं। ___नोट - तीन तीन द्वीप समुद्र का आशय ऊपर बताए अनुसार १. द्वीप का मूल नाम २. 'वर' शब्द लगाकर कहा जाने वाला नाम ३. 'वराभास' शब्द लगाकर कहा जाने वाला नाम। इस प्रकार ये तीनतीन नाम अरुणद्वीप से लगाकर सूर्य द्वीप तक असंख्याता परिपाटियों में समझना चाहिये। अन्त के ५ नाम वाले द्वीप समुद्र एक-एक ही हैं यथा - १. देव द्वीप, देव समुद्र २. नाग द्वीप, नाग समुद्र ३. यक्ष द्वीप, यक्ष समुद्र ४. भूत द्वीप, भूत समुद्र ५. स्वयंभूरमण द्वीप, स्वयं भूरमण समुद्र।
लोगे णं भंते! किंणा फुडे? कइहिं वा काएहिं? . जहा आगासथिग्गले।
भावार्थ - हे भगवन् ! लोक किससे स्पृष्ट है? वह कितने कायों से स्पृष्ट है इत्यादि समस्त वक्तव्यता जिस प्रकार आकाश-थिग्गल के विषय में कही गई है, उसी प्रकार कह देनी चाहिए।
शंका - आकाश थिग्गल और लोक में क्या अन्तर है? . समाधान - आकाश थिग्गल और लोक में विशेष और सामान्य का अंतर है। पहले लोक को 'आकाश थिग्गल' शब्द से प्ररूपित किया गया था अब इसी को सामान्य रूप से 'लोक' शब्द द्वारा प्रतिपादित किया गया है। अतः आका थिग्गल के समान ही लोक संबंधी निरूपण जानना चाहिए।
अलोए णं भंते! किंणा फुडे, कइहिं वा काएहिं पुच्छा।
गोयमा! णो धम्मत्थिकारणं फुडे जाव णो आगासत्थिकारणं फुडे, आगासस्थिकायस्स देसेणं फुडे, आगासत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे णो पुढविकाएणं फुडे जाव णो अद्धासमएणं फुडे। एगे अजीवदव्वदेसे अगुरुलहुए अणंतेहिं अगुरुलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासअणंतभागूणे॥४४६॥
कठिन शब्दार्थ - संजुत्ते - संयुक्त। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अलोक किससे स्पृष्ट है? वह कितने कायों से स्पृष्ट है ? इत्यादि सर्व पृच्छा यहाँ पूर्ववत् करनी चाहिए।
उत्तर - हे गौतम! अलोक धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है, अधर्मास्तिकाय से लेकर यावत् समग्र आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है। वह आकाशास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है तथा आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है किन्तु पृथ्वीकाय से स्पृष्ट नहीं है, यावत् अद्धा-समय (कालद्रव्य) से स्पृष्ट नहीं है।
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