Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - द्वीप और उदधि द्वार
जाव वणस्सइकाएणं फुडे, तसकाएणं सिय फुडे, सिय णो फुडे, अद्धासमएणं फुडे। एवं लवण समुहे, धायईसंडे दीवे, कालोए समुद्दे, अभितर पुक्खरद्धे। बाहिर पुक्खरद्धे एवं चेव, णवरं अद्धासमएणं णो फुडे। एवं जाव सयंभूरमण समुद्दे। एसा परिवाडी इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वा, तंजहा -
"जंबूदीवे लवणे धायई कालोय पुक्खरे वरुणे। खीर-घय खोय णंदि यं अरुणवरे कुण्डले रुयए॥१॥ आभरण वत्थ गंधे उप्पल तिलए य पउम णिहिरयणे *। वासहर दह णईओ विजया वक्खार कप्पिंदा॥२॥ कुरु मंदर आवासा कूडा णक्खत्त चंद सूरा य।
देव णागे जक्खे भूए य सयंभूरमणे य॥३॥" एवं जहा बाहिर पुक्खरद्धे भणिए तहा जाव सयंभूरमण समुद्दे जाव अद्धासमएणं गो फुडे॥४४६॥
कठिन शब्दार्थ - परिवाडी - परिपाटी, अणुगंतव्वा - अनुसरण करना (जानना) चाहिए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप किससे स्पृष्ट है ? तथा वह कितने कायों से पृष्ट है? क्या वह धर्मास्तिकाय से लेकर पूर्वोक्तानुसार यावत् आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है ?
उत्तर - हे गौतम! जम्बूद्वीप धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है, किन्तु धर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है तथा धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है। इसी प्रकार वह अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के देश और प्रदेशों से स्पृष्ट है, पृथ्वीकाय से लेकर यावत् वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है तथा त्रसकाय से कथंचित् स्पृष्ट है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं है, अद्धा-समय कालद्रव्य से स्पृष्ट है।
इसी प्रकार लवण समुद्र, धातकीखण्ड द्वीप, कालोद (कालोदधि) समुद्र, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और बाह्य पुष्करार्द्ध द्वीप के विषय में इसी प्रकार का पूर्वोक्तानुसार धर्मास्तिकाय आदि से लेकर अद्धासमय तक की प्ररूपणा करनी चाहिए। विशेष यह है कि बाह्य पुष्करार्ध से लेकर आगे के समुद्र एवं द्वीप अद्धा-समय से स्पृष्ट नहीं है। यावत् स्वयम्भू रमण समुद्र तक इसी प्रकार की प्ररूपणा करनी चाहिए। यह परिपाटी (द्वीप और समुद्रों का क्रम) इन गाथाओं के अनुसार जान लेनी चाहिए। यथा -
* पाठान्तर - 'पउम पढवि णिहिरयणे' (मलयगिरि टीका सम्मत पाठ)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org