Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - चौबीस दण्डकों में संस्थान आदि की प्ररूपणा
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तेउकाइयाणं सइ कलाव संठाणसंठिए पण्णत्ते। वाउकाइयाणं पडागा संठाणसंठिए पण्णत्ते। वणप्फइकाइयाणं णाणा संठाणसंठिए पण्णत्ते॥४३५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुणों और मृदु लघु गुणों में से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण सबसे कम हैं, उनकी अपेक्षा मृदु तथा लघु गुण अनन्त गुणा हैं। पृथ्वीकायिक जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय संस्थान के बाहल्य आदि की वक्तव्यता के समान अप्कायिकों से लेकर तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिकों तक के स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी संस्थान, बाहल्य आदि की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए, किन्तु इनके संस्थान के विषय में यह विशेषता समझ लेनी चाहिए कि अप्कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय थिबुक (जल बिन्दु) के आकार की कही गई है, तेजस्कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय सूचीकलाप-सूइयों के ढेर-के आकार की कही गई है, वायुकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय पताका (ध्वजा) के आकार की कही गई है तथा वनस्पतिकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय का आकार नाना प्रकार का कहा गया है।
बेइंदियाणं भंते! कइ इंदिया पण्णत्ता? · गोयमा! दो इंदिया पण्णत्ता। तंजहा - जिभिदिए य फासिदिए य। दोण्हं वि इंदियाणं संठाणं बाहल्लं पोहत्तं पएसा ओगाहणा य जहा ओहियाणं भणिया तहा भाणियव्वा, णवरं फासिंदिए हुंड संठाणसंठिए पण्णत्ते त्ति इमो विसेसो। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय जीवों के दो इन्द्रियाँ कही गई हैं, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। दोनों इन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, प्रदेश और अवगाहना के विषय में जैसे समुच्चय के संस्थानादि के विषय में कहा है, वैसा ही कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इनकी स्पर्शनेन्द्रिय हुण्डक (बेडोल) संस्थान वाली होती है।
एएसि णं भंते! बेइंदियाणं जिब्भिंदिय फासिंदियाणं ओगाहणट्ठयाए पएसट्टयाए ओगाहण पएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? . . - गोयमा! सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिभिदिए ओगाहणट्ठयाए, फासिंदिए ओगाहणट्ठयाए संखिजगुणे। पएसट्ठयाए-सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिदिए पएसट्ठयाए,
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