________________
पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति (१) जैन आगेमों में तथा बौद्ध साहित्य में बारंबार मंखली गोशालक का उल्लेख आता है । गोशालक एक स्वतंत्र सम्प्रदाय का प्रवर्तक था जिसका नाम आजीवक सम्प्रदाय था। दीघनिकाय की बुयोपकृत टीका (सुमंगलाविलसिनी १६२) में इस बात का उल्लेख है कि गोशालक के मत के अनुसार मनुष्य समाज छह अभिजातियों में विभक्त है, इनमें से तीसरी लोहाभिजाति है । यह जाति निम्रन्थों की है जो एकशाटिक होते हैं । चूंकि जैन सम्प्रदाय में दिगम्बरत्व महावीर के पहले स्वीकृत नहीं था अतः एकशाटिक निर्ग्रन्थों से गोशालक का आशय महावीर के अनुयायियों से भिन्न किसी अन्य निग्रन्थ सम्प्रदाय से रहा होगा।
(२) उत्तराध्ययन (अध्याय २३) में एक महत्वपूर्ण विवाद अंकित है। यह विवाद केशी और गौतम के बीच हुआ था । गौतम महावीर के शिष्य थे तथा केशी एक पूर्वक्रमागत निर्ग्रन्थ परम्परा का प्रतिनिधि था। विवाद का विषय यह है कि जब चातुर्याम तथा पांच महावतों का ध्येय एक है तो चार के स्थान में पांच की क्या आवश्यकता ? इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि महावीर द्वारा पांच व्रतों के उपदेश देने के पूर्व चार याम मानने वाला एक निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय वर्तमान था तथा उसके प्रधान पार्श्वनाथ थे।
(३) भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति में भी एक विवाद का उल्लेख है जिसमें कालासवेसीयपुत्त तथा महावीर के एक शिष्य ने भाग लिया है । कालासवेसीयपुत्त ने विवाद के अन्त में क्षमा याचना की तथा अपने चार यामों के स्थान पर पांच महाव्रतों को स्वीकार किया । इससे भी महावीर के पूर्व चार यामों वाले एक निग्रन्थ सम्प्रदाय का अस्तित्व सिद्ध होता है।
(४) बौद्ध साहित्य में महावीर और उनके शिष्यों को चातुर्याम-युक्त कहा है । दीघनिकाय में श्रेणिक बिंबसार के पुत्र कुणिक (अजातशत्रु )ने बुद्ध के समक्ष अपनी महावीर से हुई भेंट का वर्णन किया है। उस वर्णन में मह ये शब्द कहलाए हैं-" निर्ग्रन्थ चातुर्याम संवरसे, संयत होता है"। इसी प्रकार से संयुत्तनिकाय में निक नामका एक व्यक्ति ज्ञातपत्र महावीर को चातुर्यामयुक्त कहता हैं। यह तो सर्वविदित ही है कि महावीर तथा उनकी परंपरा पांच महाव्रतधारी रही है फिर बौद्ध परंपरा में उन्हें चार यामयुक्त क्यों कहा गया है ? स्पष्ट है कि महावीर के पहले उस सम्प्रदाय में चा
माहात्म्य था और इन्हीं के द्वारा वह अन्य सम्प्रदायों में ज्ञात था । बुद्ध तथा उनकी परंपरा को निर्ग्रन्थों के सम्प्रदाय में महावीर द्वारा किए गए आंतरिक परिवर्तनों का पता नहीं चला था अतः वे उसे उसके पुराने लक्षगों से ही जानते और इंगित करते रहे।
(५) जैन श्रुतांगो में चौदह धर्म ग्रन्थों का बारंबार उल्लेख आता है। इन ग्रन्थों को पूर्व नाम दिया गया है। जैन परंपरा के अनुसार ये पूर्व महावोर के पश्चात् लुप्त हो गए । प्रो. जैकोबी का अनुमान है कि श्रुतांगो के पूर्व अन्य धर्मग्रन्थों का अस्तित्व एक पूर्व सम्प्रदायके अस्तित्व का सूचक है।
(६) प्रो. जैकोबी ने मज्झिमनिकाय में वर्तमान एक विवाद का उल्लेख किया है। यह विवाद बुद्ध तथा सच्चक के बीच हुआ था। सबक का पिता निग्रेन्थ था किन्तु सचक स्वयं निर्ग्रन्थ नहीं था। क्योंकि उसने गर्वोक्ति की है कि मैंने नातपुक्त (महावीर) को विवाद में परास्त किया । चूंकि एक प्रसिद्ध वादी जो स्वतः निर्ग्रन्थ नहीं पर उसका पिता निर्ग्रन्थ है बुद् का समकालीन सिद्ध होता है तो उस निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का प्रारंभ बुद्ध के समय में कैसे हो सकता है, वह सम्प्रदाय अवश्य ही बुद्ध के पूर्व स्थापित होना चाहिए । बुद्ध और महावीर का समय प्रायः एक ही है, प्रत्युत बुद्ध महावीर से जेठे हैं अतः निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय महावीर के पहले वर्तमान था यह सिद्ध होता है ।
१. उवासगदसाओ २.१३३; भ. सु. १५.१ २. मज्झिम निकाय १.१९८, २५०, २१५; सं. नि. १.६८; ४.३९८; दी. नि. १.५२. दिव्यावदान पृ. १४३. ३ छक्कनिपात, उत्तिमपण्णासक पढमवग्ग सुत्त ३. ४. समवायांग ७७, भ. सू. ११. ११. ४३१. ज्ञा. ध. क. ५ तथा १६ ५. एस. बी. ई. व्हा. १५ पृ. १३.६. वही.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org