________________ नैषधीयचरिते (प० तत्पु० ) त्वम् एव उदाहरणं निदर्शनं ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता (10 वी० ) अस्तीति शेषः यत्राकृतिस्तत्र गुणा इति सामुद्रिकशावरहस्यस्य निदर्शनं त्वमेवास्तीति भावः // 51 // . म्याकरण-तुला Vतुल+अङ् ( भावे )+टाप् / उदाहरणम् उदाहियते इति उत् + डा+Vs+ल्युट् ( कर्मणि ) / मुद्रणा मुद्+णिच् + युच् / अनुवाद-(हे हंस ! ) तुम्हारी आकृति उपमा के क्षेत्र की नहीं, तुम्हारी सुशीलता वाणी से परे है ( और ) 'जहाँ भाकृति, वहाँ गुण' इस सामुद्रिकशास्त्र के रहस्य की छाप के उदाहरण हो तो तुम हो / / 51 // टिप्पणी-यहाँ विद्याधर द्वारा मानी हुई अतिशयोक्ति इस दृष्टि से हो सकती है कि आकृति और मशीलता के साथ क्रमशः 'तुला-विषयत्व' और 'वचोवमत्व' का सम्बन्ध होते हुए भी असम्बन्ध बताया गया है। मल्लिनाथ के अनुसार यहाँ उत्तरार्ध वाक्याथ को पूर्वार्ध वाक्यार्थों के प्रति कारण बताने से काव्य-लिङ्ग अलंकार है / शब्दालंकार 'कृति'. 'कृती' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। न सुवर्णमयी तनुः परं ननु कि वागपि तावकी तथा / न परं पथि पक्षपातितानवलम्बे किमु मादृशेऽपि सा // 52 // अन्वयः-ननु तावकी तनुः पाम् सुवर्णमया न किम् वाक् अपि तथा ( सुवर्णमयी ) ( अस्ति ) / ( तावको ) पक्षपातिता परम् अनलम्बे पथि न, किमु ( अनग्लम्बे ) मादृशे अपि सा पक्षपातिता बस्तीति शेषः। टीका-ननु सम्बोधने हे हंस ! ( 'प्रश्नावधारणाऽनुनयामन्त्रणे ननु' इत्यमरः ) तावको तव तनुः शरीरं परं केवलं सुवर्णस्य विकार इति सुवर्षमयो हेममयो न, किं किन्तु तावकी वाग वापी मपि तथा सुवर्णमयी सुष्ठु वर्णा अक्षराणि यस्यां तन्मयो / तावकी पक्षपातिता पक्षाभ्या पत्राभ्यां पतितुं गन्तुं शीलमस्येति पक्षपाती ( उपपद तत्पु० ) तस्य भावस्तत्ता परं केवलम् अनवलम्बे न अवलम्ब आश्रयो यस्य तथाभूते (व० वी० ) निराधारे इत्यर्थः पथि मागें गगने न, किमु किन्तु अनवलम्बे निराश्रये मादृशे मत्सदृशे अपि सा पक्षपातिता पक्षे पाश्वं पततीति पक्षपातो तस्य माव: अनुकूलवतित्वमित्यर्थः वर्तते इति शेषः निरवलम्बस्य त्वमेव मे सहाय इति मावः / / 52 / / व्याकरण-तावकी-तवेयम् इति युष्मत् +खञ् , एकवचन में तव का देश+ ङीप् / सुवर्णमयी सुवर्ण + मयट ( विकारार्थे )+डीप् / माशे अहमिव दृश्यते इति अस्मत् +/दृश् +कम् मदादेश, आत्व। अनुवाद-हे हंस, तुम्हारी देह ही केवल सुवर्णमय ( सोने को ) नहीं, किन्तु वाणी भी वैसी ही ( सुवर्णमय = सुन्दर अक्षरों वाली) है; तुम्हारी पक्षपातिता ( पंखों द्वारा उड़ने की क्रिया) केवल अनवलम्ब ( निराधार ) माग ( आकाश ) में ही नहीं: अपितु मुझ जैसे अनवलम्ब (निरालय) व्यक्ति पर मी तुम्हारी पक्षपातिता ( सहायकता ) है / / 52 / / टिप्पणी-यहाँ सुवर्णमयी और पक्षपातिता इन दोनों में शब्दश्लेषों की परस्पर संसृष्टि है जिससे उपमालंकार व्यंग्य है। शब्दालंकार वृत्त्यनुपास है /