Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ उनके प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ एवं पू. पूर्णचंद्रविजयजी म. सा. के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। क्योंकि जिन्होंने अपने समय में से समय निकालकर मेरे इस शोधग्रंथ का एक बार अवलोकन करके प्रफ चेक कर दिया था तो इस अवसर पर में उनको विस्मृत नहीं कर सकती / एवं अनिताजी नाहर उज्जैन, जो अभी पी-एच्.डी. लगभग पूर्ण कर चुकी है, उन्होंने भी अपने सुझाव मुझे दिये थे। उनको भी इस अवसर पर याद करके अभिवादन करती हूँ। मेरे इस शोध-ग्रंथ की प्रमुख आधारशिला मेरे संसारपक्षीय माता-पिता हैं, जिन्होंने मुझे जन्म से ही व्यावहारिक अभ्यास के साथ-साथ धार्मिक अभ्यास में भी पीछे न रहूँ, इसका विशेष ध्यान रखा था। प्रतिदिन कहते थे कि ज्ञान व्यक्ति की पाँख है। ज्ञान प्राप्त करने से व्यक्ति महान् बनता है। ज्ञान तो व्यक्ति का विश्राम है। इस तरह के संस्कार प्रतिदिन दिया करते थे। संयम जीवन ग्रहण करने के पश्चात् जब भी मिलन होता, तब वही कहते गुरु आज्ञा, वैयावृत्य एवं ज्ञानप्राप्ति में पीछे कदम मत हटाना। उनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद ही इस शोध प्रबन्ध की सफलता की सीढी हैं। साथ ही संसारी भाई-भाभियाँ, जीजाजी-भगिनी, सभी की एक ही इच्छा थी कि आप कैसे भी पुरुषार्थ करके पी-एच्.डी. करो, आपको हम तन-मन-धन से किसी भी समय साथ, सहकार एवं सहयोग देने के लिए तैयार हैं। अतः इस समय सभी को याद करना मेरा कर्तव्य है, फर्ज है। इस शोध-प्रबन्ध रूपी महायज्ञ का प्रारम्भ धर्ममय मद्रास की पावन धरा से प्रारम्भ हुआ एवं तपोभूमि, त्यागभूमि, वीरक्षेत्र थराद की धन्यधरा पर पूर्ण हुआ, जो मेरे लिए गौरव का विषय है। इस विशाल शोध-ग्रंथ की सम्पूर्णता के लिए मद्रास सकल श्रीसंघ, गुण्टूर सकल श्रीसंघ एवं थराद सकल श्रीसंघ के द्वारा उदारता पूर्वक तन, मन एवं धन से सहयोग एवं अध्ययन हेतु अनुकूलताएँ प्रदान की गईं, उसे ज्ञापित करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं, मैं हृदय से इन सभी संघों की आभारी हूँ। इस शोध ग्रंथ को विवेचनात्मक एवं विवरणात्मक, तत्त्वसम्मत, शास्त्रसम्मत एवं सप्रमाण निर्मित करने में मुझे श्री राजेन्द्रसूरी ज्ञान भंडार अहमदाबाद, श्री धनचंद्रसूरी ज्ञान भंडार थराद, श्री भूपेन्द्रसूरी ज्ञान भंडार आहोर, श्री विद्याचंद्रसूरी ज्ञान भंडार भीनमाल, श्री हेमचन्द्रसूरी ज्ञान भंडार पाटण, श्री कैलाश सागर सूरि ज्ञान भंडार, कोबा, श्री स्थानकवासी ज्ञान भंडार मैसूर, श्री तेरापंथ ज्ञान भंडार मद्रास, श्री राजेन्द्र सूरि ज्ञान भंडार मद्रास, आराधना भवन ज्ञान भंडार मद्रास, केशरवाडी जैन संघ ज्ञान भंडार मद्रास, श्रेयस्कर अंधेरी जैन संघ, बोम्बे, कलिकुंड जैन संघ ज्ञान भंडार धोलका एवं जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं आदि से समय-समय पर सन्दर्भ ग्रंथ उपलब्ध होते रहे। मैं इन सभी संस्थाओं के प्रति, व्यवस्थापकों एवं कार्यकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ। इस शोध-प्रबन्ध में हरिलालजी सेठ, किशोरजी खिमावत, सुरेन्द्रजी लोढा, मिलापचंदजी चौधरी, सेवंतीलाल मोरखिया, वाघजीभाई वोहरा, नीतिनभाई अदाणी आदि सभी महानुभावों ने प्रत्यक्ष एवं परोक्ष . रूप से मेरे शोध-कार्य में सहयोग प्रदान किया, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं। मुंबई के S.P. Shah एवं मद्रास केललितभाइ मंडोत को भी विस्मृत नहीं कर सकती / क्योकि जिन्होने पुस्तकें उपलब्ध करवाने में, कम्प्युटरराईझ करवाने में एवं कुरियर आदि सब जिम्मेदारीयाँ लेकर यथा समय कार्य पूर्ण करने में अपना कार्य गोंण करके हमारे इस शोध-प्रबन्ध को मुख्यता देते हुए तन, मन, धन के त्रिवेणी संगम से सहयोग दिया है। वह अविस्मरणीय है। जब हमने कोसेलाव में चातुर्मास किया था तब मैंने B.A. First Year का Form भरा था। उस समय S.P. Shah ने कहा था आप कडी VII Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org