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सवाने-उमरी. और नवपद-इनकों अछीतरह समझना और इनके भेदोको पहिचानना यह शास्त्रोका सार है.
२१-जैनमें गर्भाधान-जन्म-उपनयन-विद्यारंभ-विवाह-बतारोप-और-अंत्यकर्म वगेरा (१६) संस्कार माने है,
२२-पुनर्लग्न करना जैनमें मनाहै, जिसमें नुकशान ज्यादह और फायदा कमहै, उसकामको करना क्या जरूरत, ?
२३-जैनलोग-पृथवीको स्थिर-और--चांदसूर्यकों फिरते मानते है,
२४-जीवका-एक गतिसें दुसरी गति-और-इसतरह जन्मजन्मांतरकों जाना आना-जैन-मानते है, जब सब कर्मोंसे रहित होगा, उसकी मुक्ति होगी और फिर वहांसें कभी-न-लोटेगा.
(जैनमंतव्य-प्रकाश-खतम हुवा,) एकरौन कलंकीराजाके बारेभीवाज-किया, उसरोज बडी सभाभरीथी, जोजोलोग कहते कि-कलंकीराजा-संवत् (१९१४) मे होगया, मगर यहबात गलतो. जे नागम महानिशीथमूत्रके पंचमे अध्ययनमें साफवयानहकि-कलंकीराजा श्रीपभणगारकी हयातीम होगा. युगप्रधानयंत्रमें लिवाहे श्रीप्रभअणगार आठमें उदयके पहिले युगपधान होगे, पांचमे पारेक एकीसहजार वर्ष तेइसदफें जैनधर्मका उदय और तेइसके अनहोगा. उसमें जब आठमा उदय आयगा कलंकीराना-उसख्तहोगा, जमाने हालमें तीसरा उदय चाहे, श्रीभगगार युगपधान अबतकहुवे नही, फिर कैसे कहानासमताहेकि-कलंकोराजा होगया, ? युगमधान यंत्रकी गिनतोस यहभी मा महोताहे कि-आठमाउदय पांचमेआरेके. दस
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