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तवारिख-तीर्थ-चंपापुरी, (२७१) मृगौ-संवत् ( १९७५ ) वैशाखसुदी (१०) शुक्रवारके रौज मिथिलापुरीमें जायेनशीन कियेगये,-असलमें-ये-कदम तीर्थ मिथिलामेथे, जब यहांका मंदिर विरानहुवा उसवख्तसे यहां लायेगये, मंदिरके बहार एकछत्रीमें स्थुलभद्रजीके कदम जायेनशीन है, और उसपर लिखाहै संवत् (१९३६ ) में-रायबहादूर धनपतसिंहजी शाकीन मुर्शिदाबादने जायेनशीन किये, इसमंदिरके दर्शन करके यात्री चंपापुरी जानेको तयारीकरे, जो-चंपानालेके नामसे मशहूरहै, भागलपुरसे हरकिसमकी सवारी मिलसकती है, इक्का-बगी-म्याना-पालखी-वगेरा-जोचाहो हाजिरहै, जिसकी मरजी पांव पैदल जानेकी हो शौखसे जाय, सडक पकी बनीहुइहै, रास्ताभूलनेका कोइकाम नही, रास्तेमें-बागबगीचे और तरह तरहके दख्त खुशनुमा खडे है, गोया ! किसीवागमें चलरहे है, पानीकी बहुतायतसे वनास्पति ज्यादह-और-जमीन-तर-ब-तर है,
जब करीब चंपानालेके पहुचजाओगे दुरसे जैनश्वेतांबरमंदिर और धर्मशाला नजर आयगी, उसमें जाकर कयाम करना, धर्मशाला छोटीवडी यहांपर ( ४ ) है, मगर सब एकही हातेमें बनीहुइ है इसलिये एकही मालूम देती है, बडीधर्मशाला पंचायती जिसमें सात कोठरी मौजूद है, दुसरी छोटी है उसमें कोठरी तीन है, वहारकी धर्मशाला (२) रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादकी तामीर कराइहुइ जिसमें कोठरी चारहै यात्री जिस जगह चाहे कयाम करे, इन चारो धर्मशालामें-यात्री-करीब ( ४०० ) के ठहर सकते है, मंदिर तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीका शिखरबंद बेंशकिमती पुख्ता बनाहुवा और इसमें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीकी मूर्ति करीव देढहाथ बडी राजा संपतिकी बनाइहुइ तख्तनशीनहै, वैसेही निशानात बने है जैसे राजा संपतिकी बनाइ
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