________________
( ३७६ ) गुलदस्ते-जराफत. लगा, पडोसके लोग मुनकर आगये और कहने लगे क्यौं ! भाइ!! किसलिये रोते हो, ? उसने कहा देखिये ! चूहा-मेरे पेटपर होकर चला गया, लोगोने कहा चला गया तो चला गया, ! इसमें रोनेकी-क्या ! बात है, ? कंजूस बोला-में-चूहेके चले जानेपर नही रोता हुं, में-जोरोताहु सो इसखयालसेकि-यह-पंथा बूरी निकली, आज चूहा पेटपर होकर चला गया, कल-सांप-चला जायगा, फिर मेरा जिना कैसे होगा ? लोगोने कहा जमीनपर क्यों सोतेहो ? एक चार पाइ मोललाकर उसपर सोया करो, फिर जैसी आफत क्यों आयगी, ? कंजूसने कहा मेरी कंजूसाइ तो आप लोग जानतेही हो इतना खर्च मुजसे कैसे होसकेगा, ? लोगोने कहा-न-होसके तो हमकों क्या ? हम आज पडोसका हक अदा करनेकों आये है, कल हम क्यौं ! आयगे, ! तुम जानो और तुमारा काम, ऐसा कहकर चले गये, ठीक कहा है कि-कंजसोसे-न-खर्च किया जाय, न-खाया जाय,
[एक साहकार और धोबीकी तकरीर.] ६-वि.सी साहूकारने अपने धोबीसे कहा-तू-वडा गाफिल है और कपडेकों असा धोता हैकि-एकएकके दस दस बना देता है, धोबीने जवाब दिया स्यात आपका कहना सच होगा, मगर आप धुलाइ तो एक कपडेके हिसाबसेही देते है, साहूकारने कहा अबे ! गुस्ताखी क्यों करता है ? कपडे फाडकर वरवाद करना और फिर जबाबमें चालाकी ! जा चलाना ! ! आजसे कपडे दुसरेसे धुलवाये जायगे, तब धोवीकी अकल ठिकानेआइ और कहनेलगा-कसुर माफकिजिये. आइंदा ऐसा-न-करुगा, साहूकारने उसकी आजीजी पर मामूल मुताबिक कपडे उसको दिये और-वहभी-कपडे अछीतरह धोकर लानेलगा,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com