Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 515
________________ mammmmmmmmm गुलदस्ते-जराफत (३९७ ) इसबातकों पढकर शेठने उस खोपरीकों उठालिइ, और एक रुमालमें बांधकर अपनेघर लाया, शेठानीने पुछाकि-यहक्या ! लायेहो ? शेठनेकहा तुजकों इसबातसें क्या ! सरोकारहै ? अपने काममें मशगूल रहो, शेठानीको इसबातसें शक पैदाहोगया कि-सा. यत ! यहकोइचीज-मेरेदिलकों अपनी तर्फ फिरालेनेकेलिये लायेहो बादचंदरौजके शेठकी गेरहाजरीमें शेठानीने रुमालकों खोलकरदेखा तो दरमियान उसके एक खोपरी पाइ, और खयाल आयाकिजरुर यहचीज मेरेलियेही लायेहै, मेंही इसको कुटकाटकर बडियां बनातुं और शेठजीकों खिलाडुं, दुसरेरोज उसीतरह किया और जब शेठजी जिमनेकों आये शेठानीने वही बडियां उनकों परोसदिई शेठजी ! खातेहुवे तारीफ करनेलगे, क्या ! उमदा बडियां बनी है ? शेठानीने कहा क्यौ-न-हो ? यहतो आपहीकी ख्वाहेसकी चीजथी. इसबातको मुनकर शेठजी समजगये यह उसी खौपरीकी बडियां है, शेठने शेठानीसें कहा, जैसा उस खौपरीपर लिखाहुवाथा, वैसाही हुवा, में किस इरादेसे लायाथा और तेने उसका मतलब किसतर्फ उतारा, आदमी चाहेसो करे-जो-काम-होनहार होताहै वगेरहोनेके नही रहता, एकगजलका बंदभी हस्बहालहै, तकदीरके लिखेहुवे तदबीर क्याकरे ? थांभा गिरेतो थांभलें-पर्वत गिरेतो क्याकरे, ? [ गुरुजीसे चेलेका सवाल ] पृष्टः केन गुरुर्हि खिद्यतिमनो नेत्रे रुतस्तत्कथं, प्रोचे तं च गुरुमंनो नयनयो ! व्यंजनावग्रहः वेदाक्षे प्रकरं पृथक भवतितद्वर्ग मनो नेत्रयोः मां वेकगृहस्थितौ समसुखं लग्नाति तुल्यं तयोः, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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