Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 520
________________ (802) गुलदस्ते - जराफत. ४४ - [ मुताबिक धर्मशास्त्र के चार चिजोंकी तलाश, ] किसी गुरुने अपने चेलेकों कहा अगर तुजकों कोइ पुछेकिहमकों - चारचिजें जैसी बतला जिनमें एकचिज ऐसी हो - जिसकों यहां सबकुछहो परलोकमें कुछनही, दुसरी चिज ऐसीहो जिसकों परलोक में सबकुछहो-यहां कुछनही, तीसरी चिज ऐसीहो जिसकों यहां - और वहां दोनो जगह कुछभी नही, और चोथीचिज ऐसीहो जिसको यहां और वहां दोनों जगह सबकुछहो, चेलेने कहा मेरीअकल नही चलती, आप बतलाइये ! बडी महरवानी होगी, गुरुजीने कहा, सुन ! पहेली चीज वेश्याहै, जिसकों यहां रुपया पैसा - शिंगार सबकुछ है, परलोक में नही, दुसरीचीज साधुमहाराज है जिनकों यहां कुछभी सुखनही, परलोक में बहुत कुछ है, क्योंकि - धर्मकरनेसे परलो - में फायदा है. तीसरीचीज हिंसाकरनेवाला शख्श जिसकों यहां और वहां दोनांजगह सुखनही, चौथीचीज धर्मात्मा शख्श - जिसने : पूर्वजन्म में धर्मकयाथा इससे यहां सुखी है, और यहांभी धर्म करता है, इस लिये आगे परलोकमंभी सुखीहोगा, - ४५ - [ दो मुसाफिरकों एक किसानका माकुल जवाब, ] दो - मुसाफिर - दुसरे शहरकों जानेके लिये अपने घरसें चले, चारक शके फासले जानेपर दो-सडके-नजरपडी, दोनोंने खयाल किया कि - अब - किधरकों जानाचाहिये, ? थोडीदेर वहांखडे होगये और चारोतर्फ देख रहे थे तो एक किसान नजरपडा, दोनोने पासजाकर पुछा कि क्यौं ! भाइ ! ! यह सड़क किधरकों जाती है ? किसानने कहा तुमबडे पागलहो, सडकभी कहींजाती है ? जानेवा लेही जायगें, सडकतो यहांही पडीरहेगी, दोनों मुसाफिर शर्मादेहुवे और कहने लगे, बेशक ! तेरा कहना ठीक है, मगर यहतो बतला - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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