Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 539
________________ गुलदस्ते-जराफत. (४२१) दरख्तके निचे जाकर मुकाम किया, गाडीके बेल खोलदिये, और चारोंने आपसमें तजवीज किइकि-हरेक आदमी एक एक काम बांटलो, नजुमीने कहा-में-बेलोंकों जंगलमें चराकर लाता हुं, ऐसा कहकर बेलोंको जंगलकी तर्फ लेचला, हकीमने कहा-में-साकपात फलफलारी लाता हुं. ऐसाकहकर शहरकीतर्फ चला, तीसरा व्याकरणपाठी बोला में-शहरमें जाकर किसीसे खीचडीका सामान पैदा कर लाताई, और चौथा तर्कवादी बोला-में-घी लेकर आताहुँ, ऐसा कहकर चारों वहांसे रवाना होगये, नजुमीने जंगलकी तर्फ बेल लेजाकर छोडदिये और आप एक दरख्तके नीचे सोगया, बाद तीन घंटेके जब नींद खुली और देखातो बॅलोंका पता नही, उसीवख्त जमीनपर एक लग्नकुंडली खींची, और उसमें देखातो मालूम हुवा बेल गुम्म होगये है, अब मिलनेवाले नही, ऐसा समझकर बेंलोंकी तलाशीकों-न-जाकर वापिस ठिकानेपर आया, उधरसें व्याकरपाठी खीचडीका सामान लेकर आया, और चुलेपर चढादिइ, जब पकनेपर आइ उसमेस खचपचकी अवाज होने लगी, व्याकरपाठी सामने बेठा हुवाथा, बोला ! अशुद्धंकि जल्पसि, ? व्याकरणके कायदेसें खिलाफ खचपचकी-अवाज कयौं करती है, ? चुपकर ! वह चुप कयौंकर होसकतीथी, ? व्याकरणपाठीने सौचा. कि-जुठेके मुंहपर धूल डालना चाहिये, ऐसा कहकर खीचडीपर धूळ डाल दिइ, जब अवाज बंदहुइ तो कहने लगा, जुठोंका यहीउपावहै, अब कयौं चुप होगइ, इतनेमें हकीमसाहब नींवके पत्ते लेकर ठिकानेपर आये, और बेठ गये, इधर तर्कवादी जो-बी-लेने गयेथे, सेरभर घी लेकर वापिस आते रास्तेमें सोचने लगेकि-(पात्राधारंघृतं-घृताधारं पात्रं वा, ) वर्तनने घीकों संभालाहै-या-धीने वर्तनकों, इसखयालसे वर्तनकों उल्ा कर देखातो, सब-धी-जमी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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