Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 546
________________ (४२८) जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद. [गजल,-] ध्यानमें जिनके सदा लयलीन होना चाहिये, ए टेर, ज्ञानगुन ज्ञानीसें ले परवीन होना चाहिये, ध्यानमें. राह संयमकी पकर-कल्यानकी सुरत मिले, कालगफलतमें हे सजन-नाहक ! न खोना चाहिये, ध्यानमे, २ धर्म खेती कियां चहे-तो जमीको साफ रख, बीज़ समकीतका हृदयमें-सुखसे बोना चाहिये, ध्यानमें, ३ कामना मनकी सफल-आनंदसे पूरन भइ, अवतो सुमता सेन उपर-सुखसें सोना चाहिये, ध्यानमें, ४ दास चुनी अपने घर-आंगनमें फुलेगा कल्प, भवस्थिति पकनेसे-मुक्ति फल सलोना चाहिये, ध्यानमे, [उपदेशिक पद-दादरा,] उठरे मुसाफिर प्यारे, मुसाफिर प्यारे, तुजे जाना बडी दूर-उठरे मुसाफिर प्यारे, ए टेर; तुजे छाइ अनादि निदियां-अनादि निदियां, छाया आंखोंमें सरुर-उठरे, तुजे पांचो ठगोने घेरा-ठगोने घेरा, कैसा हुवा बेशहर, उठरें, . यहां नहीं है संघाती तेरा-संघाती तेरा, किसपर करत गरुर, उठरे, कहे छज्जु सफर है तेरा-सफर है तेरा, तुजे जाना बडी दूर, उठरे, ............. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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