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जिनगुणस्तवन-और-उपदेशिक पद (४२९) (तीर्थकर नेमनाथजीका स्तवन,)
[ठुमरी,] डोलेरे योबन मदमाती गुजरीयां, डोलेरे, इस चालपर,निठुर नेम पिया गये गिरनारीरे. निठुर, ए टेर, अष्टभवंतर प्रीतपुरानी-नवमें भव पिया तुमने निवारीरे, निठुर, १ मुज अबलाकों दूर करीने-पशुवनपर तुम करुना विचारीरे, नि. २ सहसा बन जइ संयम लीनो-पंच महाव्रत भये तपधारीरे, निठुर. ३ नेम राजुल दोय मोक्ष सिधारे-पहेली नेमपिया निज तारीरे, नि.४ नेम राजुल दोय मुक्ति महलमें-पदमोदयकों हरख हजारीरे, नि. ५
[उपदेशिक पद-कमाच.] दिननीके बीते जाते है, दिन, ए टेर, समरन करलो प्रभुके नामका-और विषयका तजो काम, तेरे संग-न-चलेगा एक दाम-जो देते है सो पाते है, दिननीके, १ कौन किसीका पुत्र पवारा-तुम किसके और कौन तुमारा, किसके बल ये नाम विसारा-सब देखतहीके नाते है, दिननीके २ लाखचौरासी करके आया-बडे भाग्य मानव भव पाया, तापरभी कुछ करी-न-कमाइ-फिर पीछे पस्ताते है, दिननीके, ३ जैसे पानी बीच पतासा-मूरख फसा मौजकी आशा, क्या देखे श्वाशोकी आशा-गये हाथ नहीं आते है, दिननीके, ४
[उपदेशिक पद-सोरठ,] नही ऐसो जनम वारंवार, ए टेर, आरज देश उदार नरभव-उतम कुल अवतार, दीर्घायु शरीर सुंदर-सुखसंपत दातार, नही ऐसो, १ . वीतरागसो देव पायो-गुरु गिरुखो अनगार,
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