Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 548
________________ (४३०) जिनगुणस्तवन-और-उपदेशिक पद, - - - जैनधर्म सुसाधु संगत-महामंत्र नवकार, नही ऐसो, २ सदा सूत्र सिद्धांत मुनवो-करो तत्व विचार, तप जप संयम दान पुजा-जीवदया उपकार, नही ऐसो. ३ कहां ऐसो ज्ञान निर्मल-कहां ऐसो आचार, कहां ऐसी धर्म करनी-अवर जन्म मझार, नही ऐसो. ४ फेर ऐसो कहां अवसर-पायवो संसार, हर्षचंद कहे चेत चेतन-जिम पामो भवपार, नही ऐसो. ५ [सद्गुरुस्तुतिपद-सोरठ,] बरसत वचन झरी-मुगुरु मेरे वरसत वचन झरी, श्रीश्रुत ज्ञान गगन ते उलटी-ज्ञानघटा गहरी, सुगुरु मेरे. १ स्याद्वादनय विजरी चमकत-देखत कुमति डरी, अरथ बिचार गुहर ध्वनि गरजत-रहत-न-एक धरी; सुगुरु मेरे, २ सरधा नदी चढी अति जोरे-शुद्ध स्वभाव धरी, सुभर भर्यो समतारस सागर-समकीतभूमि हरी, सुगुरु मेरे. ३ प्रकटे पुन्य अंकुरे चिहु दिश-पापजवास जरी, चातक मोर पपैया भविजन-बोलत भक्तिभरी, सुगुरु मेरे. ४ दान दया व्रत संयम खेती-भविक किसान करी, हरखचंद सुरनर शिव मुखकी-सहज स्वभाव खरी, सुगुरु मेरे. ५ - [उपदेशिकपद-काफी, ताल दीपचंदी.] कोई काल-न-जीता-काले सकल जग जीता, अकस्मात यम आन फिरेगो-जैसे मृगपर चीतारे, कोइ. १ शूरवीरभर महाबल योद्धा-ते-सब वश करलिता, ताको डर राखत नही कबही-या देखी विपरीता रे, कोइ. २ जूठी मायासे लोभाया-मान रहा अपनीता, देइ चपेट घर छोड चलेगो,-हाथ झुलावत रीतारे, कोइ. ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 546 547 548 549 550 551 552