Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 545
________________ जिनगुण स्तवन-और-उपदेशिकपद. ( ४२७ ) [ उपदेशिकपद-झींझोंटीकी ठुमरी, तीनताल. ! जलभरन जात जमुनाके घाट-बडे ठाठसे आवत कामनियां, इसचाल. कुमतप्रीतके सताये हुवेहै-विषयभोग धोखेमें आये हुवेहै, कुमत, एटेर. शुद्धहै-न-तनकी-न-बतनकीखबरहै,-फिरेजाओतनकोउठायेहुवेहे, कुमत. १ कभी नर्कमें हम कभी स्वर्गमें हम-अरहटकी तरहसे घुमाये हुवे है, कुमत. २ यही हालत होगइ मगर दिल-चा-दिलकी-दोवारा विषयको बढ़ा ये हुवेहै, कुमत. ३ कभीतो कभी हम मिलेगे सुमतसे-यही-लो-प्रभुसें लगाये हुवे है, कुमत. ४ पिता पुत्र भाइसे जाहिर जुदे है-हजारों दफे अजमाये हुवे है, कुमत. ५ अब-तुं-सौच करे मत कुंदन-किसी दिन मतलब बनाये हुवे है, कुमत. ६ [ उपदेशिक पद-झिंझोटीकी ठुमरी, तीनताल. ] गफलतमें सारी उमर गइ-कारजकी सिद्धि कछुनाजो भइ, गफलतमें ए टेर. काल अनादि सुख दुखमें खोया-मोह निद्रामें शुद्ध ना जो रही, गफलतमें. १ ज्ञान दयासिंधुने अपने कारन हितकी बात कही, गफलतमें. २ गइ सो गइ अब हाथ न आवे-अवसर देख विचारोसही, गफ. ३ तज प्रमाद अपमत होय के-मुगतपुरीकी राह ग्रही, गफलतमें. ४ दास चुनी सदगुरु सच्चेकी-आज्ञा सिरपर धारलही, गफलतमें. ५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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