Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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जिनगुण स्तवन और उपदेशिकपद ( ४२५ )
[ जिनगुण स्तवन - कालिंगडा, ] प्रभुतेरे चरनोकी सरन ग्रहुँ, जिनतेरे, एटेर, हृदयकमलमें ध्यानधरु नित- सिरपर आनवहूं. प्रभुतेरे, तुजसम खोल्यो देव खलकमे - पायो नाही कहुं, प्रभुतेर, मनकी बातां तुं सबजाने - क्यामुख बहुत कहुं, प्रभुतेरे, कविजश कहे है ! साहब - ज्यंभव दुखनासहुँ, प्रभुतेरे, [ उपदेशिकपद - कालिंगडा, - ]
१
सुनमन होनहार -न-टरे, सुनमन ! एटेर, चितकछु औरविचारत है नर - औरही औरबने, सुनमन. उपरबाज पारधिनीचे - चीडिया कैसे बचे, सुनमन. होनहार वस डस्यो पारधि - शरसिंचाणो मरे, सुनमन. होतपदारथ भाविभैया ! -क्यौ ! जगसौच करे, सुनमन. उदयकर्मगत देख जगतकी - जिनवर क्यौं न भजे, सुनमन. ५
४
१
[ जिनगुण स्तवन- रागिनी भैरवी तीनताल, ]
( दरवजा ठाडीरहुँ, पिया के आवनकी भइवीरियां, -ए चाल . ) नवरीयां मेरी कौन उतारे पार, -नवरीया मेरी, एटेर,
या संसारसमुद्र गभीरा, - किसविध उतरूं-में- पार, नवरीयांमेरी. १ रागद्वेष दोनुं नदीयां वहत है - भमरपडतगतिचार, नवरीयांमेरी. २ रिखवदासकों तार्यो चाहिये - ये विनतिअवधार, नवरीयांमेरी ३
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[ तीर्थकर महावीरस्वामीका स्तवन - रागिनी भैरवी. ] माइमेरो मनतेरो नंदहरे, माइमेरो, एटेर,
कंचन बरन कमलदललोचन - देखत नयन ठरे, माइ मेरो, १ धन त्रिशला भाग्य तिहारो -तुं तिहुँभुवनसिरे, माइ मेरो,
२
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