Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 534
________________ ( ४१६.) गुलदस्ते-जराफत. .६३-[ सांप और चूहेकी नकल, ] .. शितः केन करंडकेपि भुजगः क्षुत्पीडितोनासकत् , . रात्रौ खादिम कांक्षयाशु विवरं कृत्वोंदुर स्तन्मुखे, भाग्यादेव तदास्वयं निपतितस्तन्मांस तृप्तो भव घातस्तेन पथा नरः स्थिरतरो भोगीव भाग्ये भवेत्. १ किसी शख्शने एक सांपको एक लकडेके डब्बेमें बंद करके रखाथा. तीन रौज तक सांप उसमेसें निकल-न-सका, भुखा और प्यासा उसीमें तकलीफ पाता रहा. इत्तिफाकन ! एक चूहा रातके वख्त डब्बेके पास आया, और उस डब्बेको काटने लगा. दो-इंचका-छेद बनाकर जब भीतर घुसा उधर सांप छेदके पास मुंह लगाये तयार बेठाथा. एकदम चूहेको खा गया. और उसी रास्तेसें बहारभी निकल आया. देखिये ! तदबीर किसने किड और काम किसका हुवा. ? इसीलिये कहा जाता हैकि-तदवीरसे तकदीर मुकद्दम है. बशर्ते कि-सांपने कूछ तदवीर नही किइ तोभी तकदीरसे उसको भक्ष्य आन मिला. सबुत हुवा तदवीरसे तकदीर बडी है,-. ६४-[ एक शेठके घर चौरोका आना, ] किसी शेठके घर चौर लोग रातके बख्त चोरी करनेके लिये आये, शेठानीने देखकर शेठकों कहा चौर आ रहे है, शेठने कहा में-जानता हूं. आने दो, कुछ देर बाद फिर शेठानीने कहा, देखो! घरमेंभी आगये, तवभी शेठने यही जवाव दिया जानता हुं. तीसरी दफे फिर शेठानीने कहा देखो! अब खजानेके कमरे में आ गये, और धन मालकी गठरीयांभी बांध लिइ, शेठने कहा जानता हं, जब धन माल लेकर चौर घरसे बाहर निकले, शेठानीने कहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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