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गुलदस्ते-जराफत. (४१७ ) देखो ! चौर लोग घरसे बाहर निकले, शेठने कहा-में-सब जानता हुँ. शेठानीने मजबूर होकर एक दोहा कहा कि-जानु जानुं क्या करो-धन तो-ले गये दूर, शेठानी कहे शेठने-इस जानपनेमें धूर?
६५-[गुरुजीकी नसीहतपर चेलोंकी गुस्ताखी.]
एक-गुरु महाराज--पांच दस चेलोंकों हमरा लेकर मुल्कोकी सफर करते हुवे एक शहरमें पहूचे. और चंदरौज वहां कयाम किया. चेले भिक्षा लेनेकों शहरमें जाया करतेथे. एक रोज रास्तेमें नट लोग तमाशा कर रहेथे. देखने के लिये खडे हो गये. और बाद घडी देरके भिक्षा लेकर गुरुजीके पास आये. गुरुजीने पुछा इतनी देर कहां लगाइ ? जवावमें चेलोने पेस्तर तो-कइ-बहाने पेंश किये मगर जब गुरुजीने बहुत तंग किये कहने लगे. नटोंका तमाशा दे
खनेके लिये ठहर गयेथे. गुरुजीने कहा. आइंदा खयाल रखो. नटोंका तमाशा कभी नही देखना. जब दुनयबीकारोबार छोडकर साधु हो गये फिर तमाशा क्यों देखना ? चेलोने कूबुल किया आइंदेपर-न-देखेगें. मगर जब दुसरे रौज फिर भिक्षाकों गये, न. टनीका तमाशा देखनेकों खडे हो गये. और बाद बडी देरके गुरुजीके पास आये. गुरुजीने पुछा आज फिर इतनी देर कहां लगा. इ. ? जवाबमें कहा. आज नटनीका तमाशा हो रहाथा देखनेको ठहर गयेथे. गुरुजीने कहा. कल तुमकों मना कियाथा. ? चेलोने कहा. आपने नटोंका तमाशा मना कियाथा. नटनीका-तो-मना नहीं किया. गुरुजीने कहा जब नटोका-तमाशा मना किया तो नटनीका तो आपही मना हो गया. चेलोने कहा आपने खोलकर वात नही कही. दर असल आपहीकी भूल है.-देखिये ! चेलोकी किस कदर गुस्ताखी है-जो अपनी भूल-गुरुजीपर डालते है.
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