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( ४१८ ) गुलदस्ते-जराफत.
६६-[ भाइ और बहेनका किस्सा. किसी शहरमें एक शख्श निहायत गरीबी हालतमें आ गया था उसने खयाल किया मेरी बहेनके घर बहुतकुछ धनमालहै, बहे. त्तरहै उसक घर चले, वहां अछी तरह गुजरहोगा. गरज ! वोअपनी बहेनकेघर पहुचा, बहेनने जब इसको फटे पुराने कपडोसें गर्गबी हालतमें देखा, तो-अनजान-बनगइ, पडोसीयोने पुछा यह कौन आयाहै,? तो-कहने लगी-मेरे बापके घरका रसोइयाहै, भाइ इस बातको सुनकर दिलगिर हुवा और दिलमें कहनेलगा, देखो गरीबी हालतमें बहनभी मुजे रसोइया बतलाती है, खेर ! यहांभी रहना मुनासिब नही, वहां-न-ठहरा, और दुसरे मुल्कमें गया, जब उसकी तकदीरका सितारा तेजहुवा रोजगारमें बडीदौलत हासिल हुइ, एकरौज फिर उसकों यहबात यादआइकि-अब-अपनी बहनकेघर चलनाचहिये, देखे ! किसतरह मुलुक करती है, ? गरजकि उमदा कपडे और जवाहिरातके गहने पहनेहुवे अपनी बहेनकेघर गया, बहेन अपने भाइकों अमीरी हालतमें देखकर खुशहुइ, और कहनेलगी आओ ! भाइ ! ! बहुतदिनके बाद आयेहो, उमदा खान पानसे उसकी तवज्जों मुदारात किइ, भाइ अपने गहने कपड़ों कों कहनेलगा यह खाना तुमारेलियेहै, मेरेलिये नही, क्योंकि-जबमें-गरीबी हालतमें आयाथा, इसीवहेनने मुजे रसोइया कहाथा,
और अब यह खातिर-व-तवज्जो होरहीहै, ... ६७-[ एक उस्तादके साथ शागिर्दकी गुस्ताखी ] '.. एकउस्ताद अपने शागिर्दको हिदायत कियाकरतेथेकि-बातचीत-दुरुस्तगीके शाथ करनाचाहिये एकरौज चिलमसे आगकी चिनगारी उडकर पघडीपर जागिरी, शागिर्द ब-मुताबिक हुकम
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