Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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गुलदस्ते-जराफत. (४०१ ) किसीके पांवमें कांटा-न-चुवे, जब वापिस महेलमें आये वजीरकों बुलाकर कहने लगे जाओ ! जितना चमडा शहरमें मिले खरीदलो, वजीरने मुताबिक हुकम राजासाहबके दोचारलाख रुपयोका चमडा उसीवख्त खरीदलिया, और दोतीनदिन उसीतरह चमडा खरीदते रहे, चोथेरौज राजासाहबसे पुछाकि-अब-क्या ! हुकमहै ? और इसचमडेको क्या करना चाहिये, राजासाहबने कहा, देखो ! मेरेपावमें किसकदर कांटा चुबाहै, ?-में-जानताहुं इसतरह दुसरों कोंभी चुवताहोगा, मेरीरायहै तमाम जमीन अपनी सरहदकीचमडेसें मढादेना, ताकि किसीके पांवमें कांटा-न-लगे, वजीरने कहा खता माफहो-में-अर्जकरताहुं, ब-मुताबिक हुकम हुजुरके चमडा मढाभी दिया, फिर गाडीघोडे चलनेकी वजहसे फटजायगा
और फिर सिलाना होगा, बहेत्तरहै आप अपने पांवकी हिफाजत किजिये, थोडे चमडेसें काम होजासकता है, सारी आलमकी फिक्र कहांतक करेगें, ? राजासाहबने कहा, बेशक ! ठीकहै, अपने पांवकी हिफाजत करनाही मुनासिबहै, दुनियाकी फिक्र कहांतक किइजाय, !!
४३-[ एक हकीम और मरीजकी मजाख,] एक मरीज हकीमके पासगया और कहनेलगा मुजकों बुखार आताहै, हकीमने पुछा रौजका आताहै. ?-या-बारीका, ? मरीजने कहा हजरत ! रौजका-या-बारीका-तो-में-नहीजानता, हां ! इतना मालूमहैकि आज आयाहै, कल-न-आयगा, फिर परसों आयगा, हकीमसाहब बोले, इसीको बारी कहतेहै, मरीजने कहा, में-बारीउसकों समझताथाकि-आज-मुजकों आयाहै, कल-हकीम साहबको आयगा, परसों उनके कुनबेमेसें किसीकों, हकीमसाहब बोले खूब कहा, क्या ! आप दवालनेकों आयेहै, ? या दिल्लगी करनेकों, ? मरीजने कहा माफ किजिये, मेरीतो आदतही दिल्लगी करनेकी है,
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