Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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गुलदस्ते-जराफत. (३९९ ) ३९-किसी शहरमें राजासाहबकी रानीकों हमल रहा, राजासाहबने अपने शहरके पंडितोंको बुलाकर पुछाकि-बतलाओ ? हमारी रानीकों बेटाहोगा-या-बेटी, ? एक जइफ पंडितजी बोले बजरीये नजुमके-में-अभी बतलासकताहुं, मगर सायत ? आपको याद रहे-न-रहे ! इसलिये लाइये ! एक कागजपर लिखदेताहुं उसकों भंडारमें रखलिये, जिसवख्त रानीजीकों कोइसंतान पेदाहो, उसवख्त इसकागजको खोलकर देखलिजियेगा, आपको यकीन होना यगाकि-पंडितजीका-कहना सचहै, राजासाहबने कहा अभीलिखदो,-में-उसको भंडारमें रखवादेताहुं, पंडितजीने फौरन ! लिखदियाकि-पुत्रो-न-पुत्री-इसलेखमें पंडितजीने दो-मतलब-रखेथेकि अगर पुत्रहोगातो कहढुंगा, देखलो मेने पहलेपुत्र लिखाहै, और अगर पुत्री होगीतो कहुंगा पुत्रो-न, (यानी) पुत्र नहोगा, पुत्रीहोगी, इस तरह दोनों तर्फसे मेरीबात ठीकहोजायगी, .
। एक मश्करेकी-गुस्ताखी ] ४०-एक साधुमहाराजने अपनेधर्मशास्त्रके वयानमें आमलोगोकों मुनायाकि-जोकुछ-भलाबुरा होताहै अपनी तकदीरसे हुवाकरताहै, उसवख्त सभामें बहुतसेलोग हाजिरथे, उनमें एक मशकराभी बेठाहुवाथा उसनेभी मुना, और जब शामकेवख्त साधुमहाराज दीशा जंगल जानेलगे राहमें उसमशकरेने पीछेजाकर साधुमहाराजकी पीठपर एकपथर फेंक मारा, साधुमहाराजने पलट नजरकरके देखातो वही मशकरा नजरआया, मशकरा कहनेलगा पलट नजरसे क्या देखतेहो ? जोकुछ भलाबुराहोताहै, अपनी तकदीरसें हुवाकरताहै, यहपथर-जो-आपकों लगाहै अपनी तकदीरसे लगाहै, साधुमहाराज बोले, वेशक ! यह सब अपनी तकदीरहीका मामला है, मगरमें-यह देखताहुं, गुनाह किसने मोल लेलिया ? और पापका भागी
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