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( ४१० ) गुलदस्ते-जराफत. .. कृष्नमुखी न मार्जारी-द्विजीव्हा न सर्पिणी, .. पंच भी न पांचाली-तस्य कुलेहं बालिका, ६
इस बातकों सूनकर पंडितजी समझ गये, यह मोहरिरकी यानी लेख लिखने वालेकी लडकी है -
५५-[ एक कंजूसका-मजाख, ] . एक कंजूसका बाप बीमारपडा तो उसके बेटेने अपने बापसे कहाकि-चादर अभीसे उतार दिजिये तो अछा है, जो धोकर रख लिइ जाय ताकि-आपके मुर्देपर ओढानेके लिये काम दे, बापने कहा घबडाता क्यों है ? मेरी अंगुलीमें जो अंगुठी सोनेकी पहनी हुइ है बेचकर नया कपडा मौललाना,-बेटेने कहा-में-अपनी अंम्माजानसे पेस्तरसे इकरार कर चूका हूं कि आपके दम निकल जानेपर अंगुठो तुजे लाडुंगा, बल्कि ! वह आपके मरनेका इंतजार कर रही है, बापने कहा अबे ! कमबख्त ! क्या लडकपनकी बातें कर रहा है, रात पडनेकी तयारी है, चिराग तो जला, बेटेने कहा, तीन रौजसे आपका दम निकलनेकी हालत बीत रही है, अबतक निकला नही, नाहक ! तेल क्यों खराब करना ? बापने कहा अब में-किसी दमका मेहमान हुं, और-जी-घबडाता है, चिराग जला दे, बेटेने कहा, अछा ! जलाता हुं, मगर मुजे नींद आ जाय तो मरनेके पहेले आप चिरागको बुझाकर मरना, ताकि-तेलका बचाव हो, देखिये ! दुनियामें ऐसेभी कंजुस लडके होते है, जो अपने बापके लियेभी पेसेका तेल खर्चना नहीं चाहते,
५६-[एक जाहिल नौकरका लतिफा,] एक मालिकने अपने नौकरसे कहा चार पाइ बिछा दे और फक्त तकिया रख दे, नौकरने चार पाइ बिछा दिइ और उसपर
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