Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 529
________________ गुलदस्ते-जराफत. (४११ ) तकियाभी रख दिया, मगर फक्तकों ढुंढने लगा, देर होनेपर मालिकने पुकारा अवे ! क्या करता है ? वह कहने लगा, हुजुर ! चार पाइतो बीछा दिइ, और तकियाभी उसपर रख दिया, लेकिन! फक्तके लिहे हुँह रहा हुंकि-फक्त क्या चिन है, ? मालिकने कहा, अबे ! नादान !! क्या बकवाद कर रहा है ? मेने फिकरेमेंजो-फक्तका लब्ज कहाथा क्या ! वोभी कोई चीज है ? जो इंड रहा है, बैंइल्म नौकरका नतीजा ऐसोही हुवा करता है, ५७-[चार दामादोंका लतिका, किसी शहरमें एक पुरोहित ब्राह्मण रहताथा, और उसकी राजाके दरबारमें बहुत बड़ी इज्जत थी, यहां तककि-उसको राजाजीने दो गांवकी जहांगिरीभी दे दिइथी, उसके घर चार लडकी और एक लड़का था, चारो लडकीयोंकी सादी कर दिइ गइथीऔर-वे-अपने मुसराल में रहा करतीथी, जब लडकेकी सादीके दिन करीब आये पुरोहितजीने लिख भेजाकि-आप लोग मय कबीलेके मेरे घर तशरीफ लावे, और लडकेकी सादीकों रौनक अफरोज करे, बमुजब तेहरीरके-वे-चारों दामाद सुसरालके घर आये, और सादीका जलसा शुरु हुवा, औरभी कह रिस्तेदार पु. रोहितजीके घर आये हुवेथे, बडीशान-व-सौकतसे बरात चढी, . और बाद चंद रोजके सादी करके वापिस आये बराती लोग अ. पने अपने घर गये, और करीबके रिस्तेदारोनेभी रुकसत मांगी, मगर चारों दामाद जो पेस्तरसे आये हुवेथे जिनके नाम-विनय. राम-माधवराव-मणिराम-और-केशवलाल-थे, मुदत गुजर गइ रुकसत नही मांगते, चैनसे पुरोहितजीके रसोडेमें जाकर जीम आते थे, और दुफेरकों शतरंज खेला करतेये, यूं-कह रौज गुजरे बाद पुरोहितजीने सौचाकि-तो-ये-जानेवाले नजर नहीं आते, बहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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