Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 526
________________ ( ४०८ ) गुलदस्ते - जराफत. बर्दिया, हुजुर ! मेरी सादी नही हुई मेरी औरतकी सादी हुई है, जजसाहब बोले क्या ! अदालतमे भी दिल्लगी करते हो ? उसनेकहा, नहीं हुजुर ! मेरी क्याताकात है - जो - अदालत में दिल्लगी करूं, ? दरअसल मेरी औरतने मुजकों छोड़कर दुसरेसे सादी करलिइहै, इसबातकों सुनकर सबलोग हसने लगे, ५३ - [ एक हाजिरजवाब लडका, ] किसी बादशाहने अपने शहरमें हुकम जारी किया कि - रातके वख्त कोई आदमी घर से बाहर कदम - न - रखे, तमाम लोगोने बादशाह हुकमकी तामील कि, मगर एक लडका हुकम अदुली करके मकान के बाहर निकला, और रास्ते में सिपाइयोंकों मिला, उनाने पुछा कि क्या ! तेने शाहि हुकम नही सुना, ? लडकेने कहा बेशक ! सुना है, सिपाइयोने कहा फिर हुकम अदुली किस लिये कि ? लडकेने जवाब दिया-में- किसका लडका हुं-कुछ मालूमभी है ? जिसके सामने तमाम बादशाह - शाहजादे - और - दिवान वगेरा सिर झुकाते है, सिपाइयोने समझा कोइ शाहजादा होगा, जाने दो, असलमे वह नाइका लड़का था; देखिये ! हाजिर जवाब लडका किस कदर कामयाब हुवा, ५४ - [ संस्कृत इल्मकी तरक्की, ] किसी शहर में एक पंडितजीका जाना हुवा, रास्ते में एक भीस्तीकी लडकी मिली, पंडितजीने पुछा तुं ! किसकी लडकी है ? उसने जवाब दिया, चतुर्मुखी तो बह्मा - वृषभारूढो न शंकरः तोय धारा नतो मेघः- तस्य कुले बालिका, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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