Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 514
________________ ( ३९६) गुलदस्ते-जराफत. बेशक ! रहुंगा, मगर काम क्या करना-सो-बतलाना चाहिये, किसानने कहा, बतलाना क्याथा, जोकुछ काम मालिककरे उस मुजब करतेरहना, तब उसने नौकर रहना कुबुलकिया, और दुसरेरौज दोनोमिलकर जब खेतकों जानेलगे मालिकने मीटीसे भरा हुवा एक टोकरा अपने सीरपर उठालिया और नौकरसे कहा तुं ! पानीका भराघडा अपने सीरपर उठाले, गरजकि-दोनों अपना अपना बौज लेकर खेतमें पहुचे, मालिकने सीरपरसें मीटीका टोकरा जमीनपर पटकदिया, इधर नौकरने पानीका घडा जमीनपर दे पटका, घडा तुर्तफुटगया, और पानी बहगया, मालिक खफाहोकर कहनेलगा, अबे ! मुर्ख ! यह क्याकामं किया ? नोकर बोला आपनेही कहाथाकि-मालिककरे सो करना, मालिकने एक दरख्तकी टेंनी इसे मारनेकेलिये उठाइ, गरजकि-आपसमें-दोनोंकी हाथापाइ होनेलगी, नोकर मोटा ताजाथा आखीरकार मालिककों भागना पडा, जब मालिक घर वापिस आया, नौकरभी पीछे आया, लोगोने पुछा यह क्या ! किस्साहै, ? मालिकने कहा यह मुर्खहै, नौकरने कहा यह मुर्खहै, लोगोने नौकरकों हठादिया और झगडा तयकिया, ऐसा नौकर किसकामका-जो-बातकों समझे नही, और मालिककी हमसीरी करे, [ तकदीरका-तखाजा ] ३६-किसी शहरमें एकशेठ रहताथा, एकरौजकी वातहै, जंगलकीतर्फ शैरकरनेके लिये गया, राहमें एक आदमीकी खोपरीजमीनपर पड़ी हुइ नजर आइ, और उसपर एसालिखाहुवाथा, जम्मो कलिंगदेसे-श्रागमणं अंग देसमझमि , । मरणं समुद्दतीरे-अजवि किं किं भविस्सइः॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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