Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 497
________________ गुलदस्ते-जराफत. (३७१) है, ? जवाबमें विद्यार्थीने कहा लाडु-पेंडा -और-बर्फी, राजाजी इन बातोंकों सुनकर समझगये लडका नादानहै, फौरन ! उसको वापिस जानेका हुकम दिया, और कहला भेजाकि-तुमारे-पंडितजीकों भेजो विद्यार्थी पंडितजीके पास आया, और कहा आपको राजाजीने बुलवाये है, पंडोतजीने कहा-ठीकहै, मगर तुजसे क्या क्या! बातें हुइ वतला, विद्यार्थीने कहा, मुताविक आपके फरमानके सुलाइभ और मीठी बातेही किइहै, मुलाइम चीनोमें-रुइ-रेशम-मखमल कह सुनाया, और मीठी चीजोमें लाडु-पेंडे-वी-वगेरा कहाहै, पंडितजीने कहा, अबे ! नादान ! ! मेने तुजसे क्या कहाथा, और तुं ! क्या समझा ! ! मूर्खताके जवाब देआया विद्यार्थी बोला, नाराज क्यों होतेहो, ? जैसा आपने फरमाया मेने उनमुनय किया, इसका मतलब यह हैकि-नादान-विद्यार्थी असहीहुनाकरते है, हरेकको, चाहिये अपने मालिकके कहनेको समझे और उसपर अमल करे इसनादान विद्यार्थीकी तरह-उल्ला-खगाल-न-करे, [वालिद और लडकेकी गुफ्तगु, ] ९-किसीएक साहूकारका लडका जलमें तैरनेकेलिये नदीपर जानेलगा, वालिदने उसको मना किया, मगर उसने हरचंद-नमाना, तब वालिद गुस्सेहोकर कहनेलगे, भला! बच्चा ! तुं-जा !! अगर पानीमें डूबगया तो असा पिटुंगाकि-तुंभी याद करेगा, लडकेने कहा क्या खूब बातहै, जब-में-पानीमें ड्रबजाउगा. तो आप किसकों पिटोगे ? वालिदने कहा जब से-तु-पैदाहुया है तेरा यही हालहै, और आजतक-में-तेरी गुस्ताखीया जानचुकाहुं [हिकायत एक गुरुजी और श्रावककी, ] १०-एक श्रावक अपने गुरुमहाराजकी खिदमतमें हमेशां हा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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