Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 498
________________ ( ३८० ) गुलदस्ते-जराफत. जिर रहा करताथा, चौमासेके चार महिने तक उसने इसकदर खिदमत किइकि-जैसी-किसीने-न-किइ होगी, चंदरौजमें ऐसा मौका आगयाकि-उसकी दुकानमें रुपये पैसेकी तंगी आगइ, खाने पीनेसेभी तंग होगया, एकरोज गुरुजीने उसको पुछाकि-आजकल -तुम-उदास क्यों रहा करते हो ? उसने कहा में-रुपये पैसेसे निहायत तंग होगया हूं, लोगभी कहते हैकि-तुमने-अछा धर्म किया जो खाने पीनेसेभी दरगुजरे, धर्मका फल अछा होनेकी एवजमें क्या सबब हैकि-मेरा काम-विगड गया, गुरुजीने कहा धर्मका फल तो हमेशां अछाही होता है, मगर तुमारे कोइ पूरवजन्मके कर्मोंकानतीजा था-जो-इसहालतमें आगये हो, फिक्र मत करो, तकदीरका चक्र फिरता रहता है. चंदरौजमें जब अछी तकदीर आ जायगी फिर सवकाम सुधर जायगा, बाद चंदरौनके ऐसाही हुवा, और उसके अछे दिन आगये, इस लेखका मतलब यह हैकि-किसी शख्शने-धर्म कीया और उस अर्सेमें उसका काम विगडगया तो-यह-न समजनाकि-धर्म करनेसे बुरा हुवा, धर्मका फल हमेशां अछाही हुवा करता है, मुनासिव है पूरवजन्मके किये हुवे कर्मोके फलपर कायम रहे, [नवजवान और एक बुढेकी गप्प, ] ११-एक जगह पांचदस जवान आदमी बेठे हुवे अपनी बडाइ कर रहेथे, कोइ कहताथा-मने-पांच घाव लडाइमें तलवारके खाये, कोइ कहता है मेने सात घाव खाये, लेकिन ! मरा नही. इतनेमे एक बुढाभी वहां बेठाथा कहने लगा अये ! जवानो ! ! क्या खयाली खीचडी बना रहे हो ? तुम पांच सात घाव लगनेकी बात कररहे हो, मेने जवानीमें कइ लडाइ लड़ी और इतनेघाव बदनपर खायेथेकि-तीलधरनेकी जगह वाकी नही रहीथी, इसवातकों सुनकर एक नव जवान लड़का बोल उठा, अछा ! आप जरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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