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गुलदस्ते - जराफत.
( ३८९ ) दोस्तने आकर पुछा कि क्यौं भाइ ! किसलिये रोतेहो ! उसने जवाब दिया, आज मेरी भेंस मरगई, जो सारे कुनबेकों परवरीश करतीथी, दोस्त बोला ! भाइ ! खातिरजमा रखो, हमें तुमें काले रंगकी चीज रास्त नही, क्योंकि - आज मेरीभी एककाली इंडिया फुट गई है, इसबात सुनकर वह बोला ! ठीक है, जखमपर नमक लगाना इसीका नाम है, कहां दोपैसेकी इंडिया और कहां सोरुप - येकी भेंस, !
[ जरबुल - अमसाल, ]
२७ - १ - नयी बात नवदिन तानी खेंची तेरहदिन, २- अन होनी होनी नही होनी होयसो होय, ३ - अपने अपने कामको गरजी है सबकोय, ४- आप मरे विनस्वर्ग-न-पहचे, ५- जैसे कंथा घररहे तैसे रहे विदेश, ६ - अंधेरनगरी चोपट चौपट्टराजा टकेसेर भाजी टकेसेरखाजा, ७ - सबकी सुनना अपनी करना यहभी एक तमाशा है, ८- एक घरमें तीनमता कुशल कहांसे होय, ९ - कर्मरेख नामिटे करो कोइ लाखो चतराइ, १० - काजलकी कोठरी में कैसाही सयाना जाय एक रेख लागेही लागे, ११ - ओछेकी प्रीत बालुकी
भींत, १२ - बाहर के खाजाय घरके गीतगाय, १३ - वीछूका मंतर -
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न जाने सांपके बिलमें हाथ डाले, १४ - बेदिल नौकर दुश्मन बराबर, १५ - हलकसे निकली खलकमें पडी, १६ - दरियावमें रहना और मगरमछसे वैर, १७ - जैसी करनी वैसी भरनी, १८ - पथ्थरकों जोंक नही लगती, १९ - धोबी का कुत्ता घरका - न- घाटका, २० -दियेकेतले अंधेरा, २१ - साचकों आच नही, २२ - घरका भेदी लंका ढावे, २३ - हाथकंगनकों आरसी क्या ? २४- अब पस्ताये क्या करे चिडिया चुइ गइ खेत,
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