Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 510
________________ www.m..wwwmummarrrrrrrrrmer ( ३९२ ) गुलदस्ते-जराफत. लिये मुजकोंभी देदिजिये ताकि-मेभी-कुछ सोना महोर पैदाकरलं अगले मुसाफिरने कहा अछीबातहै मगर पेस्तर नीचे गिरीहुइ सोनाहमोर उठाकर मेरेकिस्सेमें डालदे, क्योंकि-ये-मेरी महेनतसे निकाली हुइहै, फिर-तुं-इसके कानपडलेना-जो-कुछ तेरे हिस्सेमें होगा तुजमिलजायगा, इसबातकों मुनकर कमअकल मुसाफिरने उसीतरह किया, और पहले वाले मुसाफिरने रीछके कान इसको पकडादिये और आप अपना रास्ता लिया, थोडी देरभी-न-गुजरी होगीकि-कमअकल मुसाफिर कमताकत होनेकी वजहसे सोना महोरोंकी हिर्समें मारागया, और अगला मुसाफिर अपनी जान बचाकर चलागया, ( एक बाबु साहबकी मुलाकात, ) ३०-किसी बाबुसाहवकी-कोठीपर निगाहकेलिये एक डयोदीवान मुकररथा, किसीने आनकर पुछाकि-क्यौंभाइ ? बाबुसाहब मकानपरहै, ? डयोडीवान जल्दीसे भीतरगया और फिर आनकर कहनेलगाकि-बाबुसाहब कहतेहै घरमें नहीहै, मुलाकातकों आयेहुवे महाशय ! समझगयेकि-बाबुसाहब मकानपरतोहै मगर हमसे मिलना नही चाहते, ऐसाजानकर वापिसचलेगये, [चोरीका नतीजा,] ३१-एकवस्तका जिक्र है एक गांवसे वापबेटा दोनों किसीके खेतमें चोरी करनेकेलिये गये, बापने बेटेसे कहाकि-देखले ! चारो तर्फ कोइ आतातो नही, ऐसा कहकर चारोतर्फ देखने लगे और खेतमें चोरी करनेके लिये दस्तअंदाजी किइ, इतनेमें वेटा बोला, चारों तर्फतों देखलिया, मगर एकतर्फ देखना भूलही गये, बापने कहा किधर भूल गये, वेटेने कहा उपर देखनातो भलही गये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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