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( ३७८ ) गुलदस्ते-जराफत. केवख्त-जो-चीज खाओ मीठीलगेगी, तेने उसकी एवजमें मिठाइ खाना शुरुकिइ, तीसरीवात यहथीकि-जिसको माल उधारदेना तो ज्यादह रकम अपने पास रखकर देना, ताकि-वह-अपनाघर ढुंढता चलाआवे, अपनेको उसके घर जानेकी कोई जरुरत -न-पडे, तेने उसका माइना उल्टा समझाकि-उधार देकर मांगने-न-गया, अब गौरकर ! इसमे भुल किसकी है तेरी-या-तेरे वालिदकी, ? इस बातकों सुखकर लडकेने अपना होस संभाला, और अगले वर्तावकों छोडकर वालिदको हिदायतपर कायम होगया. हरेक शख्शकों लाजिमहै अपना भला चाहनेवाले बुजुर्गोंकी हिदायतकों अछीतरह समझे उसपर अमलकर,-कभी नुकशान-न-होगा,
[एक पंडित और वेसमज विद्यार्थी,-] ८-एक राजासायने अपने शहरसे एक वात पुछनेके लिये बुलवाये, और नौकरले करदियाकि-अगर-पंडितजीको फुरसतन-होतो उनके किसी विद्यार्थीकों लेआना, नोकर पंडितजीके पास गया और कहा आपकों राजासाहव यादकरते है, उनकों फुरसत नहीथी एक विद्यार्थीको जाने के लिये तयारकिया, और चलतेवख्त उसको समझा दियाकि-देख ! तुं ! राजाजीके रुबरु जाताहै, जो कुछ राजाजी पुछे नर्मी और मुलायमीसे जवाबदेना, सख्त बातचीत मत करना, और जोकुछ पुछे उसका मीठी जबानसे उत्तर देना, विद्यार्थी इसवातकों खयालमें रखकर राजाजीकी खिदमतमें पहुचा, राजानीने पुछाकि-अछा ! तुमआये हो ! ठीक है, खेर ! यह बतलाओ ! आजकल तुम पंडितजीसे कौनकौनसी किताबे पढते हो ? विद्यार्थीने सौचाकि-पंडितजीका फरमानहै नर्म और मुलाइम वात बोलना, जवाव दियाकि-राजाजी ! रुइ-रेशम-औरमखमल वगेरा, फिर राजाजीने पुछा तुमारे खानेपीनेका क्या दंग
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