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गुलदस्ते - जराफत.
[ बेटेकेलिये बापकी हिदायत, ]
७- एक साहूकारने मरतेदम अपने बेटेकों हिदायत कि किकभी धुपमे नही चलना, शुभह शाम मीठा खाना खायाकरना, और किसीको उधारदेना फिर उसे मांगनानही, ऐसा कहकर साहुकार फोतहुवे, इधर बेटेने बाद अपने वालिदके उसी मुताविक वर्तावकरना शुरु किया, अवलतो अपने घरसे दुकानतक रास्तेमें रेशमी और जरीके कपडोसे - चांदनीयां- लगवा दिइ ताकि - बरसे दुकान जाते आते धुप-न- लगे, क्योंकि वालिका फरमानाथा धुपमे नही चलना, दुसरा फरमाना - जो मीठाखाना खाने काथा उसका बर्ताव इसतरह करने लगा कि - नामी - हलवाइयोंको घरपर नौकर रखलिये. और उनसे कह दिया कि - रौजमररा - तरहतरहकी मिठाइ बनायेकरो, गरज कि वह हमेशां मिठाइ खायाकरताथा, तीसराफरमाना वालिदका यहथाकि - उधारदेकर मांगना नही. सो जिसको उधारदेताथा मागता नहीथा, इसतरह फिजहुल खर्चकरते करते दोलत उसकी फनाहोगई, और जब मुफलिसी हालत में आनपडा, अपने वालिदके दोस्तसें जाकर मिला, और कहने लगा क्या सब है - जो - हमअपने वालिद के फरमानपर चले और फिरभी नुकशान उठाया ? क्या ! हमारे वालिद बुजर्गवार दुश्मनथे- जो ऐसी हिदायत करगये तब वालिद के दोस्त ने कहा, अबे ! नादान !! क्या कहरहाहै, ? तेरे वालिदने तो ठीकही कहाथा, तुं ! उल्टा समझगया इसका कोई क्या करे ! सुन !! तेरे वालिदने जो कहाथा धूपमें नही चलनासो - बात यह थी कि - दुपहर से पहले घर से दुकानपर चलेजाना और शामको वापिस आना, ताकि धूपसे - वचावरहे, तेने उल्टी समझसे रास्तेमें रेशमी चांदनियां लगवादिइ, दुसरीबात यहथों कि - भूख लगे उसवख्त खायाकरना विनाभूखके खाना न खाना, क्योंकि भूख
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