Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 499
________________ गुलदस्ते-जराफत ( ३८१ ) कपडे उतारिये, हम देखेतो सही आपने कितने घाव खाये है, बुढा हंसकर बोला, न-वह-जमाना रहा, न-जवानी रही, सब जखम मिट मिटा गये, क्या ! देखोगे, ? जाओ! अपने घरका रास्ता लो, कोरीबातें क्यों बना रहे हो, ? [एक हकीम और मरीजकी तकरीर, ] १२-एक हकीमसाहब अपने जाहिल मरीजसे पुछने लगेकिकहो ! बनिस्बत औरदिनोंके कल तुमारी तबीयत कैसी रही ? और खाना खुशीकेशाथ खाया-या-नही, ? मरीनने जवाब दिया तबीयत तो अछीरही. खानाभी कुछ खायागया, मगर खुशीकेशाय नही, पुदिनेकी चटनीकेशाथ खायाहै, हकीमसाहबने सोचा ! क्या खूब ! मरीजहै जो हालते बीमारीमेंभी गुस्ताखीकी बातें नहीं छोडता, जाहिरमे कहनेलगे खुशीकेशाथ नहीखाया तो क्या हर्ज है, पुदिनेकी चटनीकेशाथभी खायातो सही, देखलो ! हमारीदवाने किसकदर फायदा पहुचाया-जो-बिल्कुल नहीखातेथे अब खाने तो लगे, अवकहो-तो-ऐसीदवा दु-जो-तुमारा खानापीना बतौर आगेके छुटजाय, मरीजने कहा माफकिजिये, मेरा तो यहीहालहैकि बातबातमें घरकेलोगोसेभी दिल्लगी किया करताहुँ, [ एक कंजुसका जवाब,-] १३-एक शहरमें एक दोलतमंद शख्श अपनी दुकानपर बेठाहुवा रुपए पैसे गिनरहाथा और अपना हिसाब मिलारहाथा, मगर कुछ गलतीसे हिसाब मिलता नहीथा, इस अर्सेमें एक फकीर उसकी दुकानपर आया, और सवालकिया, यावा ! कुछ दिलवा. इये, जो आगेको मिलेगा, दौलतमंदने जवाबदिया फकीरसाहब ! जोकुछ पूर्वजन्ममें दियाथा यहां मिलाहै, जिसको गिनते गिनते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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