Book Title: Kitab Jain Tirth Guide
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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गुलदस्ते-जराफत. ( ३७१ ) गया, हरेकआदमी दौलत और ओहदेके घमंडमें-न आवे, और अपने दोस्तोंकी यादीरखे,
[दोहा ) चलत कलम सुकत अखर-यही नेहका मूल, नेह छांड नीलो रहे-ताके मुखपर धूल, १,
T [ गुलदस्ते-जराफत, ] [ एक-कंजुस-शेठ-और शेठानीका लतिफा, ]
१-किसीदिन एकशेठ अपनी शेठानीसे कहनेलगे इसवख्त हमारेपास इतनाधनमाल जमाहै, अगर हमारी सातपीढीतक लडके बाले खावे और मौजकरे तोभी कुछ अंदेशानही, लेकिन ! आठ. मीपीढीकी औलाद क्याखायगी इसबातकेलिये फिक्र हुं. शेठानी बोली खूबकहा ! फिक्रमंदहो-तो-आप जैसेहीहो, क्या ! जोजो
औलाद होतीरहेगी अपनी अपनी तकदीर शाथ-न-लायगी? और यहभी खयालकरोकि-बाद अपने मरनेके दूसरी पीडीकी औलादही अगर सबधनमाल खोबेठेगी तो तिसरी पीढीकी औलाद क्याखायगी ? नाहक ! फिक्र करतेहो. जोकुछ धनमाल अपनेपासहै चैनसे खाओपीओ और धर्ममें खर्चकरो,
[दोहा. ] पानी बात्यो नावमे-घरमे बात्यो दाम, दोनो हाथ उलेचिये-यही सयानो काम, १,
देखो ! अपनी बिरादरीमे कइ जैसेभी लोगहै जिनकेपास एक दिनकाभी खाना मौअसरनही तोभी-वे-अपनी तकदीरपर बेफिक रहा करतेहै और आप आठमी पीढीकी फिक्र लारहेहो, इस मिसालका मतलब यहहैकि-कलकीभी-फिक्र-नहीकरना तकदीरका चक्र
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