________________
तवारिख-तीर्थ-उजेन. ( ३१९ ) था-जो-कुस्ती लडनेमें बहुत बहादूर था, चंडरुद्राचार्य-जिनका बयान-सूत्र उतराध्ययनमें दर्ज है एकदफे उज्जेनमें तशरीफ लायेथे, तीर्थकर महावीरस्वामीके बाद (२९०) वर्ष पीछे राजा संप्रति इसी उज्जेनमें हुवा, जिसने बहुत जैनमंदिर-और-मूर्तिये बनवाइ, अवंतिसुकुमाल-इसी उज्जेनके वाशिंदेथे. जिनोने आर्यसुहस्ती जैनाचार्यके पास दीक्षा इख्तियार किइथी,
राजा विक्रमादित्यके वख्त यहां बडी रवन्नकथी, और संस्कृत विद्याका यहां बहुत जोर शौरथा. बडे बडे नजुमी लोग यहां हुवे. इसका दुसरा नाम अवंतीकापुरीभी बोलते है, जमीनके खोदनेसे पुरानी आवादीके निशान दुरदूरतक पाये जाते है इससे मालूम होता है पेस्तर यह बहुत बड़ा शहर था. सन (१८९१) में उज्जेनकी मर्दुमशुमारी (३४६९१) मनुष्योकीथी. हरेक किसमकी चीजे यहां मिलसकती है, बाजार लंबे चोडे और अफीमकी तिजारत यहां कसरतसे होती है, मालवेकी अफीम मुल्कोमें मशहूर है, चंदनका--तेल यहाका नामी-और अगरबत्ती यहां उमदा बनती है, का तालाव-और-बागबगीचे यहां काबिल देखनेके है और क्षिमा नदीके कनारे बहुतसे सोहावने घाट बने हुवे है, जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आबादी और पुराने जैनश्वेताम्बर मंदिरभी यहांपर मौजूद ह सराफे बाजारमें--डेहरा खडकीमें-और--नयेपुरेमें जाकर यात्री देवदर्शन करे, ठहरनेके लिये अवंती पार्श्वनाथजीके मंदिरपास धर्मशाला बनी हुई है, उसमे कयाम करे, और तीर्थ उज्जेनकी जियारत हासिल करे, शहरसे चार मीलके फासलेपर कालियाद्रहगांवके पास क्षिप्राके कनारे एक-बादशाही वख्तका बना हुवा मकान है. नदीका पानी उसमें-होज-और-घमरीये झरनोके आता है, गर्मीयोके दिनोंमें बडी आरामकी जगहहै.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com