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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( २७५ ) मधुवन एक गुलजार जगहहै, संवत् ( १७५० ) में जैनश्वेतांबर मुनि-सोभाग्यविजयजी महाराजने तीर्थोकी सफर करके-जोतीर्थमाला बनाइहै मुर्शिदाबादसे समेत शिखरकों जानेके-दो-रास्ते फरमाये, एक-वर्द्धमानगांव होकर-दुसरा-वीरभुमि तर्फ होकर जाया जाताथा, आजकल-शिखरजी पहाडके ( ४ ) कोशपर इस री नामका टेशन खुलाहै, और--वो--लाइन--गया लाइनमें जामीली है.
7 ( बयान-मधुबन.) समेतशिखर पहाडकी तलहटीमें मधुवन द्रख्तोंके झुंडसे घीरा हुवा एक-ऊमदा जगहहै, दुरसे देखतेही दिल बहुततर-च-ताजा होगा, एक-बडीआलिशान जैनश्वेतांबर कोठी-जिसमें-मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकर-चपराशी-घंटा घडियाल-नोबतखाना सबठाठ शाहानातौरसे बना हुवा है, बाग बगीचे द्रख्तोके झुंड और तरह तरहके परीदा जानवर-मोर-तोते-मेंना-चीडिया वगेरा यहांपर कलोले.करते रहते है, ओर उनकी मीठी मीठी अवाजसे दिल निहायतखुश-और-खुरम होता है, आटा-दाल-धी-दुध-मिठाइ वगेरा खानपानकी जरुरी चीजे यहांपर मिलसक्ती है, भांडे-बर्त न-वगेरा-जो-चीजे दरकारकी है यहांपर मिलसकेगी, जैनश्वेतांबर धर्मशाले यहांपर चार है, अवल धर्मशाला खुशनसीब श्राविका हरकुवरशेठानी-साकीन अहमदाबादकी तामीर कराइ हुइ पुख्ता है, कोठरी पनरांह-बीचमे चौक और-उपर निहायत उमदो छत-जिसपर गर्मीयोंके दिनोमें बडा आराम मिलता है, दुसरी धर्मशाला-रायबहादूर लक्ष्मीपतसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादकी-यहभी बहुत बड़ी और खुबसुरत बनी हुई है, यात्रीको किसी तरहकी तकलीफ-न-होगी, इसमे कोठरी (४०)-बीचमें बड़ा भारी
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