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( २९० ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. पासमें एक बगीचा यहां बनाहुवाहै, गुलाव-चमेली-बेला वगेराके फुलहमेशां उतरते है, और देवपुजनमें चढाये जाते है,-खर्च-आदमनी चढापा-पुजारी और-नोकरचाकर-यहां हमेशांसे जैनश्वेतांवरोंकी तर्फसे है, यात्री-पूजावगेरा करके ग्यारहवजेसे तीन बजेतक तीन घंटेकी धूप यहां बतीतकरे, और बाद दोपजेके नवटोंकोंके दर्शन करके नीचे मधुवनमें शामतक पहुचशकते है. हमने चारमरतवे इस तीर्थकी जियारतकिड, इसीतौरसे शुभहके गयेहुवे शामको वापिस मधुवनमें आयेथे, हरयात्रीको लाजिमहै तीयोंकी जियारतमें जल्दी न करे, धीरजकेशाथ शांतभावसे देवपुजन वगेरा करे, धर्मके काममें जितना अर्सा गुजरे उतनाही अछा, दुनियाके धंदे कभी खतम नहि होते.
सोलहमीटोंक गौतगस्वामीकी-इसमें-गौतमस्वामीके-और-चौ. इसतीर्थंकरोके चरन तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् ( १९४१ ) में इसकी प्रतिष्ठाकिइगइ, और श्रावक-लक्ष्मीचंदजीसाकीन-मांडल-मुल्केगुजरातने इसकों तामीर करवाये,-तीर्थकरकुंथुनाथमहाराजकी टोंक-इसीके सामने है, पेस्तर जिसकेदर्शनकरके आगेकों गयेथे, तीर्थकर कुंथुनाथजीकीटोंकसें-चंदाप्रभुकीटोंक खास ! पूरवकीतर्फ, पार्श्वनाथजीटोंक पश्चिमतर्फशामलियापार्श्वनाथजीका मंदिर दखन तर्फ-मधुबन-श्वेतांवरकोठी-और-धर्मशाला वगेरा उत्तरकीतर्फ है,
सतराहमीटोंक तीर्थकर धर्मनाथजीकी-३समें-तीर्थकर-धर्मनाथजीके-चरन तख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहै, संवत् (१९१२) में इसकी मरम्मत दोबारा किइगई,-तीसरीदफे संवत् ( १९३१ ) में-शेठ-नरसिंह-केशवजी-साकीन-कटनेभी इसकी मरम्मत करवाइहै.
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