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तवारिख - तीर्थ समेतशिखर.
तेइसमी टोंक - तीर्थकर अजितनाथजी की - इसमें तीर्थकर अजितनाथजी के चरन तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् ( १८२५ ) में बिरानीगौत्रीय - शाह - खुशालचंदजीने इनको ता मीर करवाये,—
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चोइसमीटोंक तीर्थकर - नेमनाथजी की - इसमें तीर्थकर नेमनाथजी महाराजके चरन तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है, संवत् ( १९२४ ) में इसकी मरम्मत रायबहादुर धनपतसिंहजी - साकीन मुर्शिदाबादने -करवाड़. तीर्थकर नेमनाथमहाराज - गिरनार पहाड़पर - मुक्तहुवे, मगर यहां उनके चरन इसलिये तामीरकरवाये गयेकि - यात्रीलोग यहां भी उनकी जियारत हासिल करशके.
पचीसमीटोंक तीर्थंकर पार्श्वनाथजीकी - इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ महाराजके - चरन - तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है-संवत् ( १८४९ ) माघशुक्लपंचमी बुधवारकेरौज श्रीसंघने तीर्थकरपार्श्वनाथजीके चरन यहां तामीर करवाये, और बाद उसके संवत् ( १९५८) में इसकी तिवारामरम्मत रायबद्रीदासजीमुकीम साकीन कलकत्ताने करवाई. शिखरवंद मंदिर मजबूत - बेशकीमती बनवाया औरप्रतिष्टा करवाई, फर्स- सफेद और काले-शंगमर्मरपथरकावेदी - निहायत उमदा यहटोंक सवटोंकोंसे उंची - इसके चढनेके लिये सीढी बनीये बनी हुई है, ठीक इसटोंक के सीरेपरचढकर नजरकरेतो तमाम समेतशिखरका - पहाडदिखपडता है, हरीहरीवनास्पतीऔर - जंगली मेवाजात हख्तों से छाया हुवा - चोगिर्दा खुशबु - महेकरही है देखकर दिलखुश होगा, मंदिरकी पीछली परकम्मामें खडेहोकरदेखो तो - गोया ! आस्मानकेसाथ बातेंहो रही है, कहांतकतारी - फकरे देखनेवालेही इसकीकदर जानसकते है, तीथामें दौलत खर्च - करना बडेशनशीवों का काम है, जो लोगधर्मकों हुवे क्या
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