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तवारिख - तीर्थ - बनारस.
बलरामपुरसें यात्री रैलमें सवार होकर गोंडा जंकशन- मनकापुरजंकशन होकर लकडाघाट टशन आवे और वहांसे सरयू नदी लंचकर अयोध्या वापिस आवे, रैलकिराया वगेरा पेस्तर लिख चुके है, - अयोध्या से तीर्थ वनारसकी जियारत जानेके लिये रैल में सवार होकर यात्री दर्शननगर - विल्हारघाट-टांडोली - गोसाइ गंज- कटहरी - अकबरपुर - मालीपुर - बिलवाइ- शाहगंज - खेटासराय मेहरावन - जोनपुर - जाफराबाद -- जलालगंज - खलीसपुर- बाबतपुरशिवपुर होते हुवे बनारस टेशनजाय, रैलकिराया एकरूपया सात आने नवपाइ लगते है, -
[ तवारिख तीर्थ - बनारस ]
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बनारस शहर निहायत पुराना और इसका असलीनाम वरनासी था, असल में यहांपर वरना और असीनामकी दो-नदीयां आनकर गंगाकों मिली. और उसजगह शहर आवादहुवा इसलिये वरनाअसी कहलाया, मगर लोकभाषामें आमलोग इसको बनारस कहनेलगे. बडेवडे दौलतमंद और खुशनशीब लोग यहां हमेशां आबाद होते चले आये, सातवे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ इसी बनारस में पैदाहुवे, चवन- जन्म - दीक्षा - और - केवलज्ञान ये चार कल्याणक उनके यहांहुवे, प्रतिष्टराजा के घर पृथवीरानीकी कुखसें ज्येष्टमुदी (१२) विशाखा नक्षत्ररोज उनका यहां जन्महुवा. बहुतमुततक उनोने यहां पर हकुमत कि, दीक्षालेनेके अवल- एक वर्षतक उनाने यहां अजहद खैरात कि, जेठमुदी (१३) के रौज दुनयवीकारोबहार छोड़कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार कि और फाल्गुन वदी ( ६ ) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेव वगेरा उनकी खिदमतम आतेथे,
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