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बयान - मुल्कनयपाल - और - हिमालय. ( २२५ )
हिमालय में कइजगह आबादी - जंगल - और कहीं कहीं खेती भी पैदा होती है, ज्यूज्यूं पहाडकों देखो द्रख्त - झाडी - फलफुल - और खेतीयोंकी सुरत बदलती जाती है, तरहतरहकी बनास्पति और जड़ी बुटीयोंका खजाना हिमालय पहाड एक उमदा जगह है, कस्तूरीये मृग - और - चमरीगौ इसमें पैदा होती है, देवदार और भोजपत्र वगेरा तरहतरहकी चीजें यहां देखलो. कइ नदीयें हिमालय सें निकलकर समुंदरकों जामीली, इस पहाडपर द्ररूत - फलफुल - और-औषधि इतनी पैदा होती है आदमीकी ताकात नही उसका तमामहाल लिखसके, केशर - कस्तूरी - बादाम - एलाची-शाहदाना- अखरोट - खजूर-नारीयल-कदम - कचनार - खीरनी-मनूरशिखा- शरपुंखा - काकजंघा - अपामार्ग - सहदेवी - लजवंती - मोलसीरी-लक्ष्मणा-विद्याब्राह्मी - शिलाजित -- सालम - बगेरा - उमदाचीजें यहांपर पैदाहोती है, जानवरों में- शैर व्याघ्र - चिता- रींछ- हिरन - वाराहसिंगा वगेरा इस पहाड में रहते है.
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पहाड हिमालय में पेस्तर जैनतीर्थथा - विविधतीर्थ कल्प मे लिखाँहै हिमालये छायापार्श्वो-मंत्राधिराजः श्रीस्फुलिंग:इसका मतलब यह है कि - हिमालय पहाडमें - छायापार्श्वनाथ-मंत्राधिराज - और - स्फुलिंग पार्श्वनाथका तीर्थया, अवनही रहा. जैनचैत्यस्तवमें बयान है कि—
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चित्रै शैले विचित्रे यमकगिरिवरे चक्रवाले हिमाद्रौ, श्रीमतीर्थकराणं प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानि वंदे, २
इसमें जो हिमाद्रौ ऐसा पाठ है इसका माइना यहहुवा कि - पेस्तर हिमालय में जैनतीर्थथा. अवनही रहा. - इसलिये वहां जानेकी जरूरत नहीरही. प्रसंगोपात यहां इतनावयान इसलिये लिखागया है कि -पेस्तर - वहां जैनतीर्थथे,
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