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नपारिख-तीर्थ- कुंडलपुर-और-सुबेविहार.: ( २४५ ), गर्मीयोके दिनोमें दफेरकी धूप वैभारगिरिकी तराइमें गुजारनाठीक है, वहां ठहरनेकी जगहबनी हुई है, चारबजे वैभारगिरिपर जाकर सामकों राजगृही आसकतेहो, ठंडके दिनोंमें चाहे दिनभर पहाडकी जियारत करतेरहो, धूप बिलकुल-न-सतायगी, जो यात्री डोलीमें जानाचाहे उसको दोरुपये नवआने लगेगे, और डोली उठानेवाले (४) आदमी आयगें, उनको पहाडपर चढनेउतरनेका महावरा बनाहुवा है, तुमकों बखूबी शामकों राजगृही पहुचादेयगे.. मगर एकरौज पेस्तर डोलीका इंतजाम करलेना चाहिये ताकि-बरवख्त जियारतके देर-न-हो, जो यात्री पांवपेदल जियारत करेतो बहुत बहेत्तरहै मगर कमजोर और जइफआदमी अगर इत नी मेहनत-न-उठासके उनके लिये डोलीमें जानाभी कोइहर्जनही.
7 (तवारिख-तीर्थ-कुंडलपुर-और-सुबेविहार,) - कुंडलपुरगांव करीब (५००) घरोंकी आबादीका एककस्बा है, इसका दूसरा नाम आजकल वडगांव बोलते है, करीब चौइससोवर्ष पेस्तर इसकानाम माहणकुडगांव था, जिसकावयान कल्पसूत्रमें दर्ज है. जमानेहालमें यहां कोइ जैनश्वेतांबर श्रावकनही. एक जैनश्वेतांबर मंदिर यहांपर बनाहुवाहै, और इसमें मूलनायक तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी मूर्ति करीब (३) फुट बडीतख्तनशीन है. जो-कि संवत् (१५०४) की तामीरकिइहुइ शामरंग निहायत खूबसुरत दर्शनकरके दिलखुशहोगा. सबमूर्तियें इसमंदिरमें (११) है, और एकतर्फ गणधरगौतमस्वामीके कदम जायेनशीन है, मंदिरमें फर्स शंगेमर्मरपथरका और सभामंडप अछा बनाहुवाहै, रंगमंडपके दरवजेपर एकशिलालेख लगाहै, और उसमे लिखाहैकिसंवत् (१९६०) में जैनश्वेतांवर श्रावक-शेठ-रुपचंद-रंगीलदास साकीन एवला-मुल्कदखनने मंदिरकी मरम्मतकरवाइ, मंदिरकेपास
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